जयपुर।राजस्थान में सरपंच एवं पार्षद पद का चुनाव लड़ने के लिए शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता समाप्त हो गयी है, और अब कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी पढा लिखा हो इन पदों के लिए चुनाव लड़ सकेगा क्योंकि राज्य विधानसभा ने इससे जुड़े दो विधेयक सोमवार को ध्वनि मत से पारित कर दिए।
विधानसभा ने राजस्थान पंचायती राज (संशोधन) विधेयक 2019 तथा राजस्थान नगरपालिका (संशोधन) विधेयक, 2019 को ध्वनिमत से पारित कर दिया । पंचायती राज से जुड़े विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री सचिन पायलट ने कहा, ‘‘वर्तमान सरकार समाज के प्रत्येक वर्ग के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
पंचायती राज अधिनियम में पूर्व में किए गए प्रावधान ऎसे थे, जिनसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किए गए सरपंच भी चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित हो गये थे। शिक्षा के आधार पर समाज को दो श्रेणियों में नहीं बांटा जा सकता, इसलिए अधिनियम का प्रावधान संविधान की मूल भावना के विपरीत है।’’
पायलट ने कहा, ‘‘संवैधानिक संस्थाओं में शैक्षिक योग्यता की शुरूआत पहले ऊपर के स्तर से संसद और विधानसभा से होनी चाहिए। समावेशी विकास के लिए सरकार की यह कोशिश है कि वंचित लोगों को भी समान रूप से अवसर मिल सके।’’
वहीं राजस्थान नगरपालिका (संशोधन) विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए स्वायत्त शासन मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने कहा कि जन घोषणा पत्र में वादा किया गया था कि चुनावों में शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता को खत्म किया जाएगा। इसी वादे को पूरा करते हुए यह संशोधन विधेयक लाया गया है।
उन्होंने कहा कि हरिदेव जोशी, भैंरो सिंह शेखावत, ज्ञानी जैल सिंह, राबड़ी देवी और उमा भारती जैसी हस्तियां मैट्रिक पास न होने पर भी अच्छे प्रशासक साबित हुए। उन्होंने कहा कि अशिक्षित व्यक्ति भी अच्छे से अच्छा प्रशासक हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में स्थानीय निकाय चुनाव में वादा किया था कि उसकी सरकार पंचायत व नगरपालिका चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता समाप्त करेगी। राज्य में पंचायत समिति, जिला परिषद व नगरपालिका का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता 2015 में वसुंधरा राजे सरकार ने लागू की थी।