किताबी ज्ञान से ज्यादा जरूरी है व्यवहारिक ज्ञान: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। शिक्षा और विद्या के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। पंचमकाल में औपचारिक शिक्षा बढ़ रही है, और सच्ची विद्या कम हो रही है। विद्यार्थियों को केवल जानकारी रटने के बजाय चीजों के सार को समझने पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षा को विद्या की ओर ले जाना चाहिए। यह बात आदित्य सागर मुनिराज ने रविवार को चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर समिति द्वारा आयोजित नीति प्रवचन में कही। गुरूदेव ने किताबी ज्ञान से व्यवहारिक ज्ञान होना ज्यादा जरूरी बताया।

गुरुदेव आदित्य सागर मुनिराज ने कहा कि आध्यात्मिक शिक्षाओं को आधुनिक भाषा और संदर्भ में ढालने की आवश्यकता हैं, ताकि युवा पीढ़ी के लिए अधिक सुलभ बनाया जा सके। उन्होंने लोगों को सांसारिक शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान दोनों का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित किया। व्यक्तिगत विकास के लिए दोनों आवश्यक हैं। उन्होंने सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए प्राकृत और संस्कृत जैसी प्राचीन भाषाओं और ग्रंथों के अध्ययन के महत्व को बताया।

उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व विकास के लिए नकारात्मकता का त्याग सर्वप्रथम किया जाना चाहिए। उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि एक ऊंची इमारत छोटे पत्थरों (आलोचनाओं) से आसानी से क्षतिग्रस्त नहीं हो सकती। उसी तरह आप भी अपने व्यक्तित्व को ऐसा ही बनाएं। इस अवसर पर सकल समाज के राजमल पाटौदी, जेके जैन, चातुमार्स समिति के टीकम पाटनी, पारस बज, राजेन्द्र गोधा, पीयूष बज, अनिमेष जैन, उमेश जैन एश्वर्य जैन सहित कई लोग उपस्थित रहे।