भारतीय संस्कृति का सही ज्ञान प्राकृत ग्रंथों के अध्ययन के बिना संभव नहीं

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अकलंक शोध संस्थान में दो दिवसीय राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी का समापन

कोटा। अकलंक शोध संस्थान द्वारा आयोजित प्राकृत भाषा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन रविवार को हुआ। अध्यक्ष पीयूष बज ने बताया कि भारतीय प्राकृत संगोष्ठी में जैन धर्मावलंबियों ने हड़प्पा काल से प्रचलित प्राकृत भाषा को अपनाने और प्रोत्साहित करने पर जोर दिया।

विद्यालय एसोसिएशन के सचिव अनिमेष जैन ने बताया कि इस गोष्ठी में वीरचंद जैन, दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, प्रो. डॉ. जगतराम भट्टाचार्य, विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांति निकेतन पश्चिम बंगाल, डॉ. नवेंद्र भंडारी, वैज्ञानिक इसरो नासा ऑनलाइन एवं डॉ. पुलक गोयल (जैन) जबलपुर, तारा डागा, प्राकृत भारतीय अकादमी, जयपुर तथा सुमत कुमार जैन, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने कार्यक्रम में प्राकृत भाषा को अपनाकर अपने मूल को समझने की बात कही।

उन्होंने कहा कि आज कोटा में वर्धमान विश्वविद्यालय में भी प्राकृत पढ़ाई जाती है। परंतु जानकारी और सरकारी सहयोग न होने से इसके प्रति लोगों की रुचि नहीं है। अनिमेष जैन ने बताया कि एसोसिएशन ने वर्ष 1952—57 तक कोटा झालावाड़ निर्वाचन क्षेत्र के प्रथम सांसद नेमीचंद कासलीवाल के पौत्र संदीप कासलीवाल को सपत्नीक सम्मानित भी किया।

रवि जैन ने बताया कि वह दो बार सांसद व एक बार राज्यसभा सदस्य चुने जा चुके हैं। कार्यक्रम का संचालन शोध संस्थान की संस्कृति जैन ने किया। कार्यक्रम में एडीवाईएसपी अंकित जैन, पंकज मेहता, केडीए सचिव कुशल कुमार कोठारी, राजमल पाटोदी, सकल जैन समाज के संयोजक जेके जैन, सुरेश चांदवाड़, महेंद्र जैन, संदीप जैन, उमेश जैन, ऐश्वर्य जैन, डॉ. जे के सिंघवी,पवन जैन, संस्कृति जैन सहित कई जैन समाज के लोग उपस्थित रहे।

अकलंक पब्लिक स्कूल वसंत विहार में आयोजित संगोष्ठी में आदित्य सागर महाराज ससंघ के सान्निध्य में वक्ताओं ने कहा कि यदि जैन धर्मावलंबी अपने गौरव को नहीं समझेंगे तो समाज के अन्य वर्गों से क्या अपेक्षा की जा सकती है। दरभंगा विश्वविद्यालय, बिहार के डॉ. वीरचंद्र जैन ने कहा कि प्राकृत साहित्य में समरसता और सभी के लिए समानता है। इसके साथ ही प्राकृत में स्पष्ट रूप से ऊंच-नीच जैसे किसी भी तरह के भेदभाव निषेध है।

इसरो के वैज्ञानिक नगेंद्र भंडारी ने प्राकृत साहित्य में वर्णित वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर हो रही खोज पर विशेष बल देते हुए कहा कि प्राकृत अध्येताओं के साथ मिलकर यदि विज्ञान कार्य करेगा तो सफलता शीघ्र मिलेगी।

शून्य का सबसे प्रथम उल्लेख प्राकृत में: डॉ. अनुपम जैन
कुंद-कुंद ज्ञानपीठ इंदौर के डीन डॉ. अनुपम जैन ने कहा कि शून्य का सबसे प्रथम उल्लेख प्राकृत भाषा के ग्रंथ में प्राप्त होता है। ज्योतिष, खगोल विज्ञान, गणित आदि के भी उल्लेख प्राकृत ग्रंथों में प्राप्त होते हैं। गुजरात यूनिवर्सिटी अहमदाबाद के प्राकृत, पाली एवं संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दीनानाथ शर्मा ने कहा कि भारतीय संस्कृति का सही ज्ञान प्राकृत ग्रंथों के अध्ययन के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वैदिक शास्त्रों का अध्ययन भी प्राकृत के अध्ययन के बिना अधूरा है। भारत सरकार को प्राकृत भाषा के अध्ययन को प्रोत्साहित करना चाहिए।

प्राकृत भाषा से ही जन्मी हिंदी: प्रोफेसर सुमत जैन
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के प्रोफेसर डॉ. सुमत कुमार जैन ने कहा कि प्राकृत भारत में जन्मी सबसे प्राचीन भाषा है। हजारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं और इनमें अलग-अलग प्रकार की प्राकृतों का प्रयोग किया गया है। इन्हीं प्राकृतों से वर्तमान भारत की अनेक भाषाएं निर्मित हुई हैं, जिनमें हिंदी प्रमुख है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय लखनऊ परिसर के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर विजय कुमार जैन ने कहा कि प्राकृत का साहित्य बहुत विशाल है। वर्तमान में इसके अध्ययन-अध्यापन की बहुत आवश्यकता है।