जीवन में संतुलन है जरूरी, अति करती है इति :आदित्य सागर

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की की ओर से आयोजित चातुर्मास पर जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आदित्य सागर महाराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि जीवन में हर क्षण सेल्फ कंट्रोल की जरूरत होती है, जो आत्म संतुलन को जानते हैं, वह जीवन में कुछ भी कर सकते हैं।

गाड़ी अधिक गति में चलाते समय हवा का दबाव अधिक होता है। ऐसे में सेल्फ कंट्रोल न हो बात बिगड़ सकती है। जीवन में कभी अति नहीं करनी चाहिए, वर्ना इति हो जाती है। लंकापति ने अति की तो वह दशानन से रावण हो गया और राम ने संतुलन बनाए रखा तो वह राम से मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम बन गए।

उन्होंने कहा कि बचपन से पचपन तक, गरीबी से अमीरी तक जीवन के हर क्षण में संतुलन जरूरी है। यदि अति होगी तो अंत निश्चित है। उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि मुनि होकर अपना स्वाध्याय का समय और श्रावकों समय देना भी जरूरी है। बाहर के आंगुतकों को समय देना जरूरी है। जीवन संतुलन का ही नाम है।

बुराई व अच्छाई हर चीज में संतुलन होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अति से नुकसान होता है, जो संतुलन बनाए रखता है वही ​स्थिर होता है। उन्होंने कहा कि दैनिक दिनचर्या में संतुलन बहुत जरूरी है। सामजिक संतुलन, दान, दैनिकचर्या, धर्म, आध्यात्म विभिन्न स्थिति में संतुलन के महत्व पर महाराज आदित्य सागर ने प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का संचालन पारस कासलीवाल ने किया। इस अवसर पर सकल जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष राजमल पाटौदी, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, मनोज सेठी सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे। इस अवसर पर अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज संघ का सानिध्य भी प्राप्त हुआ।