हाईकोर्ट में श्रृंगार गौरी पूजा अधिकार को लेकर मसजिद कमेटी की याचिका खारिज

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वाराणसी। Gyanvapi Case: श्रृंगार गौरी पूजा अधिकार को लेकर मसाजिद कमेटी की ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंजुमन इंतजामिया कमेटी की याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की तरफ से दाखिल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दिया है। सिविल वाद की पोषणीयता पर याची की आपत्ति अस्वीकार कर दी है।

राखी सिंह व नौ अन्य महिलाओं ने पूजा के अधिकार को लेकर वाराणसी की जिला अदालत में सिविल वाद दायर किया। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी ने वाद की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की कि कोर्ट को प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट 1991के उपबंधो के तहत अदालत को वाद सुनने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कमेटी की अर्जी खारिज कर दी । जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

तर्क था कि उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है। क्यों कि पूजा से स्थल की धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ होगी।जो कानूनन नहीं किया जा सकता।इसलिए यहां नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। मर्यादा कानून के आधार पर सिविल वाद को मियाद बाधित करार दिया। कहा कि चालाकी से पूजा के अधिकार की मांग में दाखिल सिविल वाद से विपक्षी के अधिकारों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की गई है। जिससे 1991के कानून का उल्लघंन होगा। इसलिए जिला अदालत में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा केलिए दाखिल वाद सुनवाई योग्य नहीं है।

दोनों पक्षो की ओर से रखी गई दलील: मंदिर पक्ष यह स्पष्ट नहीं कर पाया है कि पूजा 1990 में रोकी गई या 1993 में, अगर इन दोनों ही तिथियों में नियमित पूजा रोकी गई तो यह लिमिटेशन एक्ट से प्रतिबंधित है। सिविल वाद उपासना स्थल अधिनियम से भी प्रतिबंधित है। क्योंकि, 15 अगस्त 1947 से ज्ञानवापी मस्जिद का वही स्टेट्स बरकरार रहना चाहिए। स्थल की धार्मिक स्थिति में बदलाव नहीं किया जा सकता। यह विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता है। क्योंकि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।और बोर्ड की संपत्ति के विवाद की सुनवाई वक्फ अधिकरण को करने का अधिकार है।

सिविल कोर्ट को अधिकार नहीं है। मंदिर पक्ष की तरफ से जैन ने पौराणिक साक्ष्यों एवं 15 अगस्त 1947के पहले से श्रृंगार गौरी, हनुमान व कृति वासेश्वर की पूजा होती आ रही है। इसलिए,1991का प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट इस मामले में लागू नहीं होगा। इनका कहना था कि मंदिर में मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होने के बाद उस जमीन का स्वामित्व मूर्ति में निहित हो जाता है। हिन्दू विधि में मंदिर ध्वस्त होने के बाद भी अप्रत्यक्ष मूर्ति का अस्तित्व बना रहता है। उन्होंने कहा औरंगजेब ने स्वयं भू विश्वेश्वर नाथ मंदिर तोड़ा और मंदिर की दीवार पर मस्जिद का आकार दिया गया है।