GST के प्रावधानों के खिलाफ कैट के 26 फरवरी के भारत बंद को देशभर में समर्थन

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कोटा। जीएसटी कर प्रणली जिसे सरलीकृत कर प्रणाली करने का दावा लगातार किया जाता रहा है वो वास्तव में सही अर्थों में देश में अब तक की सबसे जटिल कर प्रणाली बन गई हैं, जिसमें व्यापारियों को कोई सुविधा नहीं है। बल्कि हर तरफ से कर पालना हेतु जकड दिया गया है। इससे यह साफ़ जाहिर होता है इस प्रणाली को अब लोकतांत्रिक तंत्र नहीं बल्कि अधिकारी तंत्र चला रहे हैं ।

कैट जीएसटी के वर्तमान स्वरुप का घोर विरोध करता है । देश के हर राज्य में अब जीएसटी के अनेक प्रावधानों को लेकर विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं और न केवल व्यापारियों बल्कि कर प्रैक्टिशनरों, लघु उद्योग एवं व्यापार से जुड़े अन्य वर्गों ने भी कैट के भारत व्यापार बंद को अपना समर्थन घोषित किया है। प्रत्येक राज्य में कैट के राज्य स्तरीय नेता इस भारत व्यापार बंद को अभूतपूर्व सफल बनाने के लिए पूरे तौर पर जुट गए हैं और जीएसटी पर अधिनायकवाद के प्रभुत्व के खिलाफ एक जुट होकर खड़े हो गए हैं।

केंद्र सरकार द्वारा हाल में दो अधिसूचना संख्या 01/2021 – केंद्रीय कर नई दिल्ली, 1 जनवरी,2021 और अधिसूचना संख्या 94/2020 – केंद्रीय कर नई दिल्ली, 22 दिसंबर 2020 जारी की गई हैं जिसमें जीएसटी नियमों में अनेक संशोधन किये गए हैं। इन अधिसूचनाओं को जारी करते समय भारत के संविधान के प्राकृतिक सिद्धांत और भारतीय न्याय व्यवस्था की घोर अनदेखी की गई है।

इस अधिसूचना के जरिए कर अधिकारियों को यह खुला अधिकार दिया है कि वो अपने विवेक के आधार पर बिना कोई नोटिस दिए अथवा बिना कोई सुनवाई किये किसी भी व्यापारी का जीएसटी पंजीकरण नंबर निलंबित कर सकते हैं। एक तरफ देश में न्याय के उच्च मानदंडों का पालन करते हुए घोषित आतंकवादी अजमल कसाब को सुनवाई का अंतिम विकल्प देते हुए रात को दो बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की जाती हैं, लेकिन दूसरी तरफ देश के व्यापारियों को अपना पक्ष रखे बिना उनके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान जीएसटी में किया गया है। कितना बड़ा विरोधाभास है ये ?

मर्जी का व्यापार करने का मौलिक अधिकार: कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का यह स्पष्ट मत है कि भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को अपनी मर्जी का व्यापार करने का मौलिक अधिकार दिया हुआ है। इस कारण से किसी भी व्यापारी को बिना कोई कारण बताये अपनी रिटर्न को दाखिल करने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर किसी भी खरीददार व्यापारी द्वारा ख़रीदे गए माल पर दिए हुए कर का इनपुट क्रेडिट लेने से उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। बिना कोई कारण बताये अथवा सुनवाई का मौका दिए बिना उसका जीएसटी पंजीकरण नंबर भी निलंबित नहीं किया जा सकता ।

केंद्रीय बजट में प्रस्तावित धारा 16 (2) (एए) जीएसटी के मूल विचार के खिलाफ है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि माल बेचने वाला व्यापारी यदि प्राप्त किये गए कर को राजस्व में जमा कराने का प्रमाण माल खरीदने वाले व्यापारी को नहीं देगा तो माल खरीदने वाले व्यापारी को उसके द्वारा दिए हुए कर का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा। वहीँ जीएसटी की धारा 75 (12) में यदि गलती से व्यापारी ने अधिक टैक्स की गणना कर दी तो वह स्व कर निर्धारण टैक्स मानकर व्यापारी से धारा 79 के अंतर्गत बिना कोई नोटिस दिए वसूला जाएगा।

खेद है कि जीएसटी क़ानून में रिटर्न को संशोधित करने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए इस प्रावधान की मार बड़ी संख्या में आम व्यापारियों पर पड़ना निश्चित है। इसी तरह से धारा 129 (1) (ए) में ट्रांसपोर्ट के द्वारा भेजे जाने वाले माल को यदि रास्ते में किसी अनियमितता के लिए रोका जाता है तो विभाग को ऐसे मालवाहक गाडी तथा उसमें रखे माल को जब्त करने अथवा अपनी हिरासत में लेने का अधिकार दिया गया है। अभी तक इस प्रकार के मामलों में 100 प्रतिशत जुर्माना था, जिसको बढ़ाकर अब 200 प्रतिशत कर दिया है। ऐसे किसी माल को अगर कोई व्यक्ति बांड देकर भी छुड़ाना चाहे तो नहीं छुड़ा सकता है । उसको धारा 129 (2) में नक़ल जुर्माना देने पर ही माल छुड़ाना पड़ेगा। एक तरफ सरकार डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दे रही है। वहीं दूसरी ओर जीएसटी नकद लेन-देन को प्रोत्साहित कर रहा है।

व्यापारी व्यापार करने में कतराने लगा कैट ने यह भी कहा की 1 जुलाई 2021 से जो व्यापारी टीडीएस भुगतान पर काटते हैं, अब उन्हें टीडीएस काटने से पहले यह सुनिश्चित करना भी जरूरी होगा कि सप्लायर ने पिछले दो वर्षों में टीडीएस की रिटर्न दाखिल की है अथवा नहीं। इस आशय का प्रमाण पत्र भी उसे सप्लायर से लेना होगा। जीएसटी एवं एकाउंटिंग को इतना जटिल बना दिया है की आम व्यापारी व्यापार करने में कतराने लगा है कि यदि ऐसा ही रहा तो बड़ी संख्यां में देश के व्यापारी जीएसटी के अंतर्गत अपना पंजीकरण नंबर वापिस करने में देर नहीं लगाएंगेकि