केंद्र सरकार की बैंकों में फीसदी तक हिस्सेदारी घटाने की योजना
नई दिल्ली। केंद्र सरकार अगले चार साल में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 20 फीसदी तक हिस्सेदारी बेचने का खाका तैयार कर रही है। इसके लिए सरकार निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम), सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय सेवाओं के विभाग के साथ परामर्श कर रही है। मामले से अवगत एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इसकी जानकारी दी।
अधिकारी ने कहा, ‘सरकार भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों का पालन करने के लिए अगले 4 साल में सरकारी बैंकों में 20 फीसदी तक हिस्सेदारी कम करने की रणनीति पर काम कर रही है। बाजार की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकार हिस्सेदारी कम करने के लिए बिक्री पेशकश (ओएफएस) और पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) दोनों का उपयोग करने की योजना बना रही है।’
विनिवेश रणनीति के तहत सरकार का इरादा 5 सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी से कम करना है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र में सरकार की हिस्सेदारी 86.46 फीसदी, इंडियन ओवरसीज बैंक में 96.38 फीसदी, यूको बैंक में 95.39 फीसदी, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 93.08 फीसदी और पंजाब ऐंड सिंध बैंक में 98.25 फीसदी है।
यह कदम सेबी के न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों के अनुरूप है, जिसके तहत सभी सूचीबद्ध कंपनियों को न्यूनतम 25 फीसदी सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखना आवश्यक है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सेबी ने विशेष छूट दी है जिससे उन्हें इस न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अगस्त 2026 तक का समय मिल गया है।
सूत्र ने आगे बताया कि सरकार का प्राथमिक ध्यान ओएफएस के जरिये हिस्सेदारी बेचने पर होगा। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास पर्याप्त पूंजी है और ओएफएस के माध्यम से सरकार अन्य जरूरतों के लिए भी पूंजी जुटा सकती है।’
केयरऐज रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक संजय अग्रवाल ने कहा, ‘परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा अवधि के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ऋण नुकसान में सहायता के काफी इक्विटी निवेश किया है। अब बैंकों की संपत्तियों में सुधार हुआ है और बैंक अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। लेकिन सेबी के नियमों के अनुसार कुछ बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है।
इस अतिरिक्त हिस्सेदारी का वर्तमान मूल्य 43,000 करोड़ रुपये से भी अधिक है। अधिशेष का एक हिस्सा बैंकों द्वारा कारोबार के उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाएगा जबकि सरकार कुछ हिस्से को सेकंडरी मार्केट में बेचने पर विचार कर सकती है।’ सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बेचने की योजना पर जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को ईमेल किया गया मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।