अब राजस्थान में शुरू होगी प्लाज्मा थेरेपी, केंद्र की मंजूरी का इंतजार

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जयपुर। कोरोना लाइलाज है…लेकिन इसके इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है। इसे देखते हुए राजस्थान सरकार ने आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) से इसका इस्तेमाल करने की मंजूरी मांगी है। एसएमएस ने प्लाज्मा डोनर भी तैयार कर लिया है, अब बस केंद्र की मंजूरी का इंतजार है। अनुमति मिलते ही एसएमएस इसका इस्तेमाल करने वाला प्रदेश का पहला अस्पताल बन जाएगा।

राजस्थान में कोरोना के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन अभी इनके लिए कोई पुख्ता इलाज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में प्रशासन ने तय किया कि क्यों ना प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना के मरीजों का इलाज किया जाए। इसके लिए एक टीम गठित की गई। टीम नेे थेरेपी की तकनीक और इससे कैसे इलाज होगा, इस पर काम शुरू किया। करीब 7 दिन की मेहनत के बाद टीम ने इसे करने के लिए सहमति दे दी और अब आईसीएमआर से अनुमति मांगी गई है।

इस टीम में एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. सुधीर भंडारी, ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. सुनीता बुंदास, मेडिसिन प्रोफेसर डॉ. रमन शर्मा और प्रिंसीपल स्पेशलिस्ट, मेडिसिन डॉ. अजीत सिंह हैं। टीम सदस्यों का कहना है कि हम पूरी तैयारी कर चुके हैं और जैसे ही अनुमति आएगी, दो दिन में ही थेरेपी से इलाज करना शुरू कर देंगे। जहां तक उम्मीद है अगले तीन से पांच दिन में अनुमति मिल जाएगी। बता दें कि दिल्ली, केरल और मध्यप्रदेश में प्लाज्मा थेरेेपी से इलाज शुरू हो चुका है।

क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
प्लाज्मा थेरेपी में एंटीबॉडी इस्तेमाल किया जाता है। किसी खास वायरस के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडी तभी बनता है, जब इंसान उससे पीड़ित होता है। अभी कोरोना फैला है, जो मरीज इससे बीमार होने के बाद ठीक हो जाता है तो उसके शरीर में इस कोविड वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बन जाता है।

कैसे काम करती है?
पहली में वायरस शरीर में जाता है। दूसरी में यह फेफड़ों तक पहुंचता है और तीसरे में शरीर इससे लड़ने (एंटीबॉडी ही वायरस से लड़ाई करता है) और इसे मारने की कोशिश करता है, जो सबसे खतरनाक स्टेज होती है। यहां शरीर के अंग तक खराब हो जाते हैं।

कब सबसे कारगर है?
प्लाज्मा थेरेपी से इलाज करने के लिए सबसे सही वक्त दूसरी स्टेज होती है। क्योंकि पहली में इसे देने का फायदा नहीं और तीसरी में यह कारगर नहीं रहेगा। प्लाज्मा थेरपी मरीज को तीसरी स्टेज तक जाने से रोक सकती है। कोरोनावायरस के मरीजों पर इसके इस्तेमाल से उनकी हालत में सुधार देखा गया है।