कोटा। जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में अध्यात्म विशुद्ध ज्ञान पावन वर्षायोग में श्रमण श्रुतसंवेगी आदित्य सागर मुनिराज ने रविवार को चातुर्मास के अवसर पर अपने नीति प्रवचन में अहिंसा, शांति, और समर्पण की महिमा पर जोर दिया गया है। इसमें बताया गया है कि हमें अपने आदर्शों, विशेषकर भगवान महावीर और भगवान राम जैसे महापुरुषों की शिक्षाओं के अनुसार जीना चाहिए।
महावीर स्वामी ने अहिंसा और शांति के सिद्धांतों के प्रचार के लिए बड़ा पुरुषार्थ किया था और हमें भी इसी उद्देश्य के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। भगवान राम ने हमेशा शांति की स्थापना का प्रयास किया, चाहे वह भरत को राज्य देना हो या रावण को संधि के लिए प्रेरित भेजना हो।
उन्होंने कहा कि अहंकार और मान का त्याग ही सच्चे महापुरुष की पहचान है। जब जीवन में अशांति होती है, तो शांति की स्थापना के लिए हमें कई बार अपने अहंकार और मान को छोड़कर समझौता करना पड़ता है। उदाहरण के रूप में, जब रावण ने अपनी मान कसाय को छोड़कर संधि की कोशिश नहीं की, तब उसे भारी विनाश का सामना करना पड़ा।
गुरूदेव ने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि किसी भी विवाद में शांति स्थापित करने के लिए जरूरी है कि लोग आपसी मतभेदों को सुलझाने में सहयोग करें। यह प्रवचन हमें प्रेरित करता है कि शांति को अपने जीवन में सबसे ऊंचा उद्देश्य बनाना चाहिए और दूसरों की भलाई के लिए त्याग करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
मंच संचालन पारस कासलीवाल एवं संजय सांवला ने किया। इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के कार्याध्यक्ष जेके जैन, मनोज जैसवाल,अशोक पहाडिया, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज आदित्य, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।