यदि मरण को उत्सव बनाना है तो जीवन को महोत्सव बनाएं: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में मंगलवार को आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर बोलते हुए कहा कि हर व्यक्ति एक विशेष प्रयोजन के साथ जन्म लेता है।

आपका जन्म एक आयोजन है इसका निश्चित प्रयोजन होता है और जो इस प्रयोजन के अनुसार जीवन जीते हैं, वह मोक्ष की ओर अपने राह प्रशस्त करते हैं। परन्तु मनुष्य जीवन के प्रयोजन को आदमी भूलता जा रहा है। वह सांसारिक सुख, भोग विलास व इंद्रीय सुख को इस जीवन का प्रयोजन मान बैठा है।

जब आप अपने आयोजन के प्रयोजन को सफल बनाओगे तब जीवन व मरण के बंधन से छूट सकोगे। एक बीज से पौधा, पेड, फूल व फल तक एक निश्चित यात्रा होती है वैसे ही मनुष्य जीवन की एक नि​श्चित यात्रा है।

जन्म व मरण एक सामान्य प्रक्रिया है, इसके बीच का जीवन ही विशिष्ट है। आध्यात्मिक प्रबंधन कहता है जीवन के आयोजन से उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा होनी चाहिए। परन्तु मुनष्य ने जीवन को सांप- सीढी का खेल बना कर छोड दिया है।

आपके दादा- पिता आपके लिए सम्पत्ति छोड़ जाते हैं, पिता पुत्र के लिए और आप जीवन भर संपत्ति बनाने में लगाते हैं। कभी हानि और लाभ होता है। सम्पति घटती व बढ़ती रहती है। आप इसी में उलझ कर रह जाते हैं।

खुद के लिए समय निकालो और जीवन को सार्थक बनाओ। इस जीवन को सही दिशा दें और उस दिशा में सही उद्देश्य शामिल हो। जीवन बेहतर ढंग से जीयें। यदि आपको अ​च्छी मृ​त्यु प्राप्त करनी है, तो जीवन में ढोंग नही ढंग से जीना शुरू कर दें । इस जन्म व मरण में जो महत्वपूर्ण है वह आपका जीवन है। जीवन एक आयोजन है ओर यदि जीवन को महोत्सव बना सकें, तभी आपका मरण उत्सव बन सकेगा।