स्पीकर पद को लेकर एनडीए में खींचतान, कौन बनेगा बिड़ला या कोई और

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नई दिल्ली। Lok Sabha Speaker: 18वीं लोकसभा में किसी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ। एनडीए की सरकार जरूर बनी, लेकिन खंडित जनादेश की स्थिति में स्पीकर की भूमिका बेहद अहम होती है। बीजेपी और उसके घटक दलों, खासकर टीडीपी में इस पद को लेकर कश्मकश जारी है।

संसद सत्र शुरू होने के 2 दिन बाद यानी 26 जून को सरकार की ओर से लोकसभा अध्यक्ष का नाम घोषित किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसे लेकर कई सारे नामों की चर्चा हो रही है। इनमें ओम बिड़ला भी शामिल हैं, जो पिछले कार्यकाल में अध्यक्ष थे।

इसके अलावा, भतृहरि महताब और डी पुरंदेश्वरी भी इस दौड़ में शामिल हैं। ये दो राज्यों के ऐसे नेता हैं जो भाजपा की धन्यवाद सूची में शीर्ष पर हैं। अगर महताब की बात करें तो वह ओडिशा के जाने-माने नेता हैं। वह नवीन पटनायक की बीजू जनता दल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। वहीं, पुरंदेश्वरी पार्टी की आंध्र प्रदेश यूनिट की चीफ हैं।

खासकर संख्याबल के हिसाब से एनडीए में दूसरा सबसे बड़ा घटक दल टीडीपी इस पद को लेने के लिए पूरा दबाव बनाए हुए है। संसद का पहला सत्र 24 जून से शुरू होने वाला है। आठ दिन तक चलने वाले इस सत्र में 26 जून को अध्यक्ष का चुनाव होगा।

चुनाव से पहले इस पद को लेकर चर्चाएं न सिर्फ एनडीए के घटक दलों के बीच चल रही हैं बल्कि विपक्ष भी इस बात पर जोर दे रहा है कि यह पद एनडीए के घटक दलों के पास ही जाना चाहिए, न कि बीजेपी के।

मोदी के सामने गठबंधन सरकार चलाने की क्या चुनौतियां होंगी बीजेपी के लिए सहयोगी दलों की अनदेखी आसान नहीं। चूंकि पिछले दो चुनावों में बीजेपी को अकेले ही पूर्ण बहुमत हासिल था, इसलिए इस पद के लिए घटक दल न तो दबाव बनाने की स्थिति में थे और न ही बीजेपी ने यह पद उन्हें दिया ही। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में बहुमत से 31 सीटें पीछे रह गई बीजेपी के लिए घटक दलों को नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं है।

वो भी दूसरे सबसे बड़े घटक दल टीडीपी को, जिसके पास लोकसभा में 16 सांसद हैं। हालांकि एनडीए के तीसरे सबसे बड़े घटक दल जनता दल (यूनाइटेड) ने स्पष्ट कर दिया है कि वो किसी भी फैसले को स्वीकार करेगी लेकिन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के रुख को देखते हुए ऐसा नहीं लग रहा है कि वो भी जनता दल (यू) की तरह मान जाएगी।

टीडीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पट्टाभि राम कोमारेड्डी ने मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया है कि स्पीकर का पद उसी को मिलेगा जिसके नाम पर सर्वसम्मति होगी। उनका कहना था, “एनडीए के सहयोगी दल जब एक साथ बैठेंगे तो यह तय कर लेंगे कि स्पीकर पद के लिए हमारा उम्मीदवार कौन होगा। आम सहमति बनने के बाद ही उम्मीदवार उतारा जाएगा और टीडीपी सहित सभी सहयोगी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे।

बताया जा रहा है कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के पद के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के घर पर एनडीए के घटक दलों की बैठक हो चुकी है, लेकिन उस बैठक में क्या हुआ, इसके बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है।

संसदीय बैठक में दिखी एनडीए की खींचतान: राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि बीजेपी निवर्तमान स्पीकर और राजस्थान की कोटा-बूंदी सीट से लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले ओम बिड़ला को एक बार लोकसभा अध्यक्ष बना सकती है। ओम बिड़ला पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की खास पसंद बताए जाते हैं, लेकिन एनडीए के घटक दलों के बीच उनके नाम पर सहमति बन पाएगी, इसके आसार कम ही दिख रहे हैं।

स्पीकर पद के लिए क्यों अड़ी है टीडीपी: इसके अलावा, एक बात यह भी सामने आ रही है कि टीडीपी के अड़ियल रुख को देखते हुए बीजेपी पार्टी की आंध्र प्रदेश इकाई की अध्यक्ष डी पुरंदेश्वरी का नाम भी आगे बढ़ा सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरंदेश्वरी चंद्रबाबू नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी की बहन हैं। पुरंदेश्वरी उस वक्त चंद्रबाबू नायडू के साथ खड़ी थीं जब नायडू पर अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्तापलट करने का आरोप लगा था और इसके लिए उनकी आलोचना हो रही थी।

पारिवारिक रिश्ते अपनी जगह हैं, पुरंदेश्वरी हैं तो बीजेपी की। ऐसे में यह तो हो सकता है कि उन्हें डिप्टी स्पीकर बना दिया जाए, लेकिन स्पीकर का पद तो टीडीपी अपने पास ही रखना चाहेगी। हालांकि एक संभावना ये भी है जताई जा रही है कि स्थिति ज्यादा प्रतिकूल आ जाएगी और टीडीपी बीजेपी के स्पीकर को नहीं स्वीकार करेगी तो उस स्थिति में शायद बीजेपी यह पद जेडीयू को दे दे।

बहरहाल, विपक्षी दल भी इस बारे में बीजेपी को उस परंपरा की भी याद दिला रहे हैं कि स्पीकर का पद यदि सत्ता पक्ष का हो तो डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास रहता है। इसी स्थिति में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के नाम पर आम सहमति बनती है। लेकिन 2019 में तो बीजेपी ने यह पद किसी को दिया ही नहीं, इस बार ऐसा शायद न हो।

टीडीपी क्यों अड़ी: एक बड़ा सवाल ये है कि आखिर टीडीपी इस पद को लेकर इतना अड़ियल रुख क्यों अपनाए हुए है। इसका कारण स्पीकर के पद की अहमियत है और वो भी गठबंधन सरकार की स्थिति में जब किसी भी एक दल के पास पूर्ण बहुमत न हो। विपक्षी दल यानी इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल भी टीडीपी और जेडीयू को इसके लिए लगातार आगाह कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन भी तैयारी में है! शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के नेता संजय राउत तो यहां तक कह चुके हैं कि यदि टीडीपी के स्पीकर पद के उम्मीदवार को एनडीए समर्थन नहीं करती है तो इंडिया गठबंधन समर्थन देने को तैयार है।

स्पीकर की भूमिका के कारण ही सरकारें गिरीं: वहीं, कांग्रेस नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एनडीए के घटक दलों को बीजेपी के पिछले दस साल का इतिहास याद दिलाते हैं और शायद यही वजह है कि टीडीपी इस पद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। गहलोत का कहना है, “टीडीपी और जेडीयू को महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गोवा, मणिपुर जैसे राज्यों में सरकारों को गिराने के बीजेपी के षडयंत्र को नहीं भूलना चाहिए। इनमें से कई राज्यों में तो स्पीकर की भूमिका के कारण ही सरकारें गिरीं और पार्टियां टूटीं।

सांसदों की हॉर्स ट्रेडिंग: यहां तक कि साल 2019 में टीडीपी के 6 में से 4 राज्यसभा सांसद बीजेपी में शामिल हो गए थे, तब टीडीपी कुछ भी नहीं कर पाई थी। यहां तक कि साल 2019 में टीडीपी के 6 में से 4 राज्यसभा सांसद बीजेपी में शामिल हो गए थे, तब टीडीपी कुछ भी नहीं कर पाई थी। इसलिए यदि बीजेपी लोकसभा स्पीकर का पद अपने पास रखती है तो टीडीपी और जेडीयू को अपने सांसदों की हॉर्स ट्रेडिंग होते देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।