वन कर्मियों की हड़ताल खत्म कराने के लिए सीएम का दखल जरूरी

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-देवव्रत हाडा-
कोटा।
प्रदेश के आंदोलनरत वन कर्मचारियों की जायज मांगों को लेकर हो रहे आंदोलन के खतरे को प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार को समय रहते भांप लेना चाहिए और वन कर्मचारियों की सभी जायज मांगों को मानते हुए इस आंदोलन को समाप्त करने के लिए यथेष्ट उपाय करने चाहिए। ताकि एक बार फिर से वन कर्मचारी काम पर लौट आयें और पूरी तत्परता और मुस्तैदी के साथ वन्यजीव और वनों की सुरक्षा के अपने उत्तरदायित्वों का जिम्मेदारी से निर्वहन करें।

यह प्रदेश के वन और वन्य जीवों की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मामला है। वनसेवक महीनों घर से दूर रहते हुए जंगली जानवरों के बीच, बेजुबान पेड़ों और जानवरों की रक्षा करते हैं। जो खुद यह नहीं बता सकते कि उनका जीवन कितना खतरे में है और ऎसे में यही वनकर्मी ही उनकी सुरक्षा की ढाल बनते हैं। अपने हक के लिए उनको सड़क उतरना पड़ रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

वन विभाग के होने से जंगल बचे हुए हैं। जंगल है तो जीवन है। इनकी मांगे जायज हैं। इन्हें मान लेना चाहिए और जल्द से जल्द प्रकृति को बचाने की मुहिम को आगे बढ़ाने में योगदान देना चाहिए। वनकर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से बाघों सहित अन्य वन्यजीव की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है।

वन कर्मचारी अपनी नौकरी के दौरान अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। वह अपने घर-परिवार से दूर रहकर वन में रहते हुए वन और वन्यजीवों की सुरक्षा के आज के उस दौर में अहम भूमिका निभा रहे हैं, जब पारिस्थितिकी संतुलन और पर्यावरण की सुरक्षा-संरक्षा की दृष्टि से वन और वन्यजीवो को बचाया जाना अत्यंत आवश्यक है। इस लिहाज से उनका काम सरकारी और वेतनभोगी तो है लेकिन प्रकृति के लिए यह काम बहुत महत्वपूर्ण है। उनकी जायज मांगों और भावनाओं को राज्य सरकार को समझना चाहिए और उनकी हड़ताल को समाप्त करवाने के हरसंभव उपाय करने चाहिए।

प्रदेश में जिन भी स्वयंसेवी संगठनों, राजनीतिक दलों और जनप्रतिनिधियों की वन और वन्य जीवों की सुरक्षा पारिस्थितिकी संतुलन पर्यावरण की रक्षा में जरा सी भी रुचि है तो उन्हें राज्य सरकार पर वन कर्मचारियों की जायज मांगों को मानने के लिए दबाव बनाना चाहिए।

वन कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर काफी समय से लगातार धरने-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनके इन कार्यक्रमों में व्यस्त रहने के कारण वन और उसमें आवास करने वाले वन्यजीव बेसहारा से हो गए हैं। उनकी सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। राज्य सरकार को चैतन्य होना चाहिए और तत्काल आंदोलन को समाप्त करने के लिएजरूरी पहल करनी चाहिए।