किसानों से ज्यादा गेहूं खरीदने लगे व्यापारी, जानिए क्यों

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नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत के कृषि बाजार का रुख निजी क्षेत्र की ओर मोड़ दिया है। निजी व्यापारी इस बार बड़ी मात्रा में किसानों से गेहूं खरीद रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि निर्यात पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर हो सकता है। दूसरी तरफ, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकार द्वारा गेहूं की खरीद पिछले साल की तुलना में थोड़ी धीमी है।

मौजूदा समय में रबी की यह फसल पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में काटी और खरीदी जा रही है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने भी गेहूं की खरीद शुरू की है, लेकिन आंकड़े बताते हैं यह शुरुआत धीमी है। केंद्रीय खाद्य विभाग के नए आंकड़ों के अनुसार, सरकार ने अब तक 5,86,000 किसानों से 69 लाख टन गेहूं की ही खरीद की है। इन किसानों को लगभग 1400 करोड़ रुपये (न्यूनतम कीमत) का भुगतान किया गया है।

वहीं, पिछले साल इस अवधि तक सरकार ने 1.26 करोड़ टन गेहूं खरीद लिया था। ऐसे में ये आंकड़े मौजूदा समय में गेहूं की सरकारी खरीद की धीमी गति की ओर इशारा करते हैं। आमतौर पर, एफसीआई और राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियां ​​​​कुल उत्पादन का लगभग 60 फीसदी गेहूं खरीदती हैं, जबकि 40 फीसदी खुले बाजारों में बेचा जाता है।

यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर में गेहूं की बड़ी किल्लत हो सकती है। ऐसे में भारत इस अंतर को पाटने के लिए अधिशेष संग्रह और बंपर फसल पर निर्भर है। दुनियाभर में खाद्य कीमतों में वृद्धि के बीच भारत मिस्र, तुर्की, फिलीपींस, कई अफ्रीकी देशों और यहां तक कि यूरोप को गेहूं निर्यात करना चाहता है। 15 अप्रैल को दुनिया के शीर्ष गेहूं आयातक देश मिस्र ने भारत से गेहूं खरीदने को मंजूरी दे दी। यूक्रेन युद्ध के कारण देश में गेहूं का स्टॉक कम हो गया है।

इस सीजन में निजी कारोबारियों द्वारा अब तक गेहूं की खरीद आठ साल में सबसे ज्यादा है। निजी व्यापारियों ने मंगलवार को एक ही दिन में 24,400 टन गेहूं खरीदा। इनके द्वारा अब तक 3.34 लाख टन गेहूं खरीदा जा चुका है। गेहूं की कुल आवक 67.5 लाख टन को पार कर गई है।