चम्बल को कॉस्मेटिक सर्जरी नहीं नैसर्गिक सोंदर्य की जरूरत

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    गंगा अवतरण दिवस पर विशेष आलेख

    -बृजेश विजयवर्गीय-
    गंगा दशहरा यानी गंगा अवतरण दिवस पर भागीरथ जी को याद करना जरूरी है। लेकिन गंगा परम्परा की वाहक मध्यप्रदेश के महू की पहाड़ियों से बह कर आने वाली चम्बल सर्वाधिक प्रदूषित उसी कोटा नगर में है जहां की समूची सम्यता को विकास इसी नदी के किनारे हुआ।

    अपने उद्गम स्थल से पंचनदा इटावा में यमुना में मिलने वाली चम्बल लगभग 1 हजार किलोमीटर का सफर तय करती है। इस नदी के पानी पर समूचे राजस्थान की पेयजल योजनाओं का खका तय होता है और कई नगरों की प्यास बुझाने वाली ये नदी आज सबसे ज्यादा मैली कोटा में ही है।

    इसके किनारे रावतभाटा और कोटा और केशरायपाटन बड़े शहर और कस्बे है जिनका मलमूत्र सीधी ही सैकड़ों नालों के माध्यम से नदी में बहाया जा रहा है। कोटा में बड़े बड़े उद्योगों का विकास चम्बल के पानी के कारण ही संभव हुआ और इसके ही कारण कोटा को देश विदेश में पहचान मिली।

    फिल्मों में चम्बल को डाकुओं के कारण भी जाना जाता था। लेकिन ये इसकी पहचान नहीं हो सकती। चम्बल के किनारे केश्वरायपाटन जैसे धर्मिक,सांस्कृतिक केंद्र हैं तो राष्ट्रीय परमाणु बिजली घर एवं कोटा थर्मल पाॅवर प्लाण्ट, एमटीपीसी बिजली उत्पादन के केंद्र तथा राजस्थान मध्य प्रदेश के लिए नहरों के तंत्र विकसित हुआ चम्बल के ही पानी के प्रताप का परिणाम है।

    चम्बल मुकुंदरा टाईगर रिजर्व का भी हिस्सा है और राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण्य का भी। भविष्य में गांधी यागर या मुकुंदरा में चीता लाया जाएगा तो चम्बल भी उसका विचरण क्षेत्र होगा। कोटा व गांधी सागर से घड़ियाल तो पलायान कर गए, लेकिन मगरमच्छ बचे हुए हैं, जो अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। गंगा अवतरण दिवस पर इतना ही पर्यावरण होगा कि चम्बल आईसीयू में है और उसे उचित उपचार की जरूरत है न कि काॅस्मेटिक सर्जरी की।

    जनता की अपेक्षा के अनुरूप् तकनीकी और इंजीयिरिंग से युक्त 22 नालों के प्रदूषण मुक्ति के ट्रीटमेंट प्लाण्ट्स की कार्यक्षमता को परखने और उसे निरंतर चलायमान बनने की सिफारिश इस सरकार से करना चाहना चाहते हैं। कारण स्पष्ट है कि साजीदेहड़ा ट्रीटमेंट प्लांट फेल हो गया है। इसी के साथ छोटे छोटे प्रदूषण मुक्ति के उपाय ग्रीन ब्रिज जैसे उपाय भी नालों पर करना चाहिए। उसी पर बड़े ट्रीटमेंट प्लांट की सफलता निर्भर करेगी।

    दुर्भाग्य से प्रदूषण मुक्ति के प्रयास अधर में है। कहने को तो रिवर फ्रंट पर पर्यटन विकास के सपने दिखाए जा रहे हैं, लेकिन इससे चम्बल को विशेष फायदा फिलहाल दिखता नहीं। हालांकि ट्रीटमेट प्लांट कोटा में पहले भी और अब दो नए बन गए हैं। जैसी का आशंका है चम्बल प्रदूषण मुक्त हो पाएगी।

    अभी केवल इतना ही कह सकते हैं कि रिवरफ्रंट के बहाने सरकार ने इस दिशा में कुछ तो सोचा। इतना पर्याप्त नहीं है। नदी मरणासन्न है तो इसका उपचार रिवरफ्रंट से नहीं होगा प्रदूषण मुक्ति से ही होगा। केशरायपटन तक इसका विस्तार होना आवश्यक है।

    नहीं तो चम्बल को आगे से रेत लूट के कारण जाना जाता है, न कि पानी के कारण। कृत्रिम सौंदर्य के बजाए नदी का नैसर्गिक सौंदर्य बहाल किया जाए। दरअसल चम्बल को उन भागीरथों की आवश्यकता है जो नदी को निर्मल और अविरल बना सके।