शबरी और कर्माबाई की भक्ति भाव व प्रेम पराकाष्ठा से भाव विभोर हुए श्रृद्धालु

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श्री पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर में श्री भक्तमाल कथा का आयोजन

कोटा। श्री पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के षष्ठम प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव (पाटोत्सव) के तहत श्री भक्तमाल कथा में मंगलवार को कर्माबाई की खिचड़ी से शबरी के बेरों तक की कथा में भक्तों के प्रेम, वात्सलय, करूणा, भक्ति की पराकाष्ठा को वृंदावन धाम के संत चिन्मय दास महाराज जी के मुखारविंद से सैकड़ों भक्तों ने सुना।

संत चिन्मयदास महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि कोई कामदेव जैसा सुंदर हो जाए। कुबेर से अधिक धनवाला बन जाए। अधिक ज्ञानी बन जाए, ब्रह्मा की पदवी से भी बड़ा पद मिल जाए तो भी उसका जीवन व्यर्थ है, यदि उसको सतसंग ना मिले। रावण के पास भी मंदोदरी जैसी सुंदर पत्नी, इंद्र को जीतने वाला पुत्र और सोने की लंका थी, परन्तु यह मनुष्य जीवन की सार्थकता नहीं है।

वृंदावन धाम के संत चिन्मय दास महाराज ने कहा कि कर्मा बाई भक्तिभाव से भगवान के लिए खिचडी बनाती थी। उनके प्रेम व वात्सलय के लिए भगवान बाल्यकाल में उनका भोग ग्रहण करते थे। कर्माबाई की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। कर्माबाई प्रभु का स्मरण करते-करते ही भोजन बनाती थी। एक दिन उनके यहां महापुरुष आये। उन्होने खिचडी बनाने के नियम बताये। कर्माबाई स्नान कर खिचडी नियमपुर्वक बनाने लगी तो उन्हें देर हो गई। उन्होंने यह सोच कर कि आज तो मेरे ठाकुर जी भूखे रह जाएंगे। परन्तु जब ठाकुर जी को भोग लगाया गया तो उनके मुंह व हाथों में खिचडी लगी हुई थी। आज भी भगवान जगन्नाथ में बाल भोग में कर्मा बाई की खिचडी का भोग लगता है।

शबरी का वैराग्य
राम की अनन्य भक्त शबरी का जन्म भील जाति के एक कबीले के राजा अज के यहां हुआ था। एक दिन शबरी माता इन्दुमती जब शबरी को तैयार कर रही थी तो उन्होने भाववश पूछा कि आप मुझे इतना तैयार क्यों कर रही हो ? तब माता इन्दुमती ने कहा कि आज तुम्हें देखने वाले आएंगे। विवाह होगा, तुम्हारी संताने होंगी होगी। शबरी ने कहा उसके बाद क्या होगा। उसके बाद सब की तरह इस संसार को छोड कर परमात्मा मे लीन हो जाओगी। यदि परमात्मा के पास जाना है तो इतने प्रपंच में पड़ना ही क्यों ? जब शादी का दिन आया तो उनके पिता ने बलि देने वाले जानवरों को दिखाया तो वह व्याकुल हो गई। शबरी ने सभी को मुक्तकर दिया और जंगल में भाग गई और उनका वैराग्य जाग गया।

शबरी और राम का मिलन
शबरी हर रोज भगवान की राह देखती थी, जिससे शबरी और राम जी का मिलन हो और कहती थी मेरे राम आयेंगे। शबरी ने अपना जीवन श्रीराम के दर्शन की इच्छा में बिताया था। एक दिन ऐसा आया जब सीता की खोज में निकले राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में पधारे और शबरी ने फूलों से उनका स्वागत किया और शबरी की राम जी से मुलाकात हो गई। शबरी बहुत गरीब थी। इसीलिए उनके पास दोनों भाइयो को बैर खिलाने के अलावा कुछ नहीं था। शबरी ने सारे बैर चखे जो बैर मीठे थे, वही राम को खिलाये।

पूर्व जन्म मे शबरी कौन थी
शबरी पूर्व जन्म में एक परमहिसी नाम की रानी थी। राजा उन्हें रानी होने के कारण साधु संग व कथा सुनने जाने की आज्ञा नहीं देते थे। ऐसे में वह अपनी दासियों को भेजकर उनसे कथा सुनती थी। एक बार कुम्भ के मेले में परमहिसी रानी और राजा दोनों साथ में गये थे। परन्तु कुंभी बड़े परदे लगाकर राजा ने उन्हे संतो को देखने तक नहीं दिया। ऐसे में रानी ने कहा प्रभु मुझे अगले जन्म मे नीच कुल मे पैदा करना। रानी बन कर में भगवान की भक्ति नही कर पा रही हूं, साधु संगम नही कर सकती हूं। तभी रानी ने गंगा में जल समाधि ले ली।

अंत में बांके बिहारी मंदिर के राजेन्द्र खण्डेवाल, संरक्षक रमेश चंद्र शर्मा, पूजा नागरवाल, अनिता अग्रवाल, मधुबाला शर्मा, अमित वर्मा, संतोषी बाई, निक्की सरदार, गिरधरलाल बडेरा, आशीष झंवर, महावीर नायक, जीएल वडेरा, निशांत सिक्का, सहित महिलाओं व पुरुषों ने महाआरती में भाग लिया।