जयपुर। निजी स्कूलों के फीस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई है। प्रदेश में 50 हजार निजी स्कूलों के 70 लाख विद्यार्थियों के अभिभावक राहत का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद उन पर 100 फीसदी फीस जमा कराने का दबाव बढ़ा है। कोरोनाकाल के दौरान शुरू हुआ फीस विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण अभी सरकार भी इस मामले पर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। हालांकि फीस का यह मामला सरकार के 9 अप्रैल को निकाले गए आदेश के बाद से ही शुरू हुआ था, जब सरकार ने लॉकडाउन के कारण बंद स्कूलों में फीस वसूली पर 3 माह के लिए रोक लगा दी थी।
आरटीई के सरकार पर 800 करोड़ से अधिक बकाया
आरटीई के तहत निशुल्क पढ़ाई के भी अभी निजी स्कूलों के करीब 800 करोड़ रुपए बकाया हैं। वर्ष 2020-21 सत्र का तो अभी पुनर्भरण ही शुरू नहीं हुआ। यह करीब 600 करोड़ है जबकि वर्ष 2019-20 की अधिकांश स्कूलों की दूसरी किस्त भी बकाया चल रही है। इसके करीब 200 करोड़ रुपए बकाया है।
कब क्या हुआ
- 9 अप्रैल 2020 को आदेश जारी कर शिक्षा विभाग ने 30 जून 2020 तक निजी स्कूलों की फीस वसूली पर रोक लगा दी थी।
- 30 जून की अवधि खत्म होने के बाद स्कूल संचालक फीस मांगने लगे और अभिभावक जमा नहीं करा रहे थे। ऐसे में विवाद बढ़ता जा रहा था। इसके बाद सरकार ने 7 जुलाई को अभिभावकों को राहत देते हुए स्कूल खुलने तक फीस वसूली पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ निजी स्कूल संचालक हाईकोर्ट चले गए।
- 23 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने सरकार को फीस को लेकर एक फार्मूला तय कर पेश करने के निर्देश दिए।
- 28 अक्टूबर को शिक्षा विभाग ने हाईकोर्ट के निर्देशों की पालना में जितना कोर्स उतनी फीस की तर्ज पर फार्मूला तय कर कोर्ट में पेश किया।
- 18 दिसंबर को हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि राज्य सरकार के 28 अक्टूबर के आदेश में की गई सिफारिशों के अनुसार फीस वसूल की जा सकेगी। इसके बाद निजी स्कूल संचालक सुप्रीम कोर्ट चले गए।