सरकार के इस फैसले के बाद जमाखोर सक्रिय हो गए, जिससे इनकी कीमतें ऊपर चढऩी शुरू हो गई हैं
मुंबई। अरहर, मूंग और उड़द आदि दालों की आयात सीमा तय होने का घरेलू बाजार में इनकी कीमतों पर तत्काल असर दिख रहा है। सरकार के इस फैसले के बाद जमाखोर सक्रिय हो गए, जिससे इनकी कीमतें ऊपर चढऩी शुरू हो गई हैं, जो पहले न्यूतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे थीं। भारत दुनिया में दलहन का सबसे बड़ा आयातक देश है।
अगस्त से अरहर, उड़द और मूंग की कीमतें नवी मुंबई के थोक बाजार मेंं 5 से 10 प्रतिशत अधिक हो गई हैं। हालांकि कुछ मंडियों में सरकारी आंकड़ों के अनुसार कीमतें अब भी एमएसपी से ऊपर नहीं पहुंच पाई हैं। सोमवार को सरकार ने मूंग और उड़द दाल की आयात सीमा 3 लाख टन तय कर दी थी।
इस घोषणा के बाद तूर और मूंग की कीमतें 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर क्रमश: 4,800 रुपये और 5,000 रुपये हो गई हैं। हालांकि अरहर की कीमतें अब भी एमएसपी से थोड़ी कम हैं।
आयात सीमा तय होने के बाद भारत से दलहन की मांग कम होने लगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अरहर की कीमतें अगस्त में 400 डॉलर प्रति टन से कम होकर 300 डॉलर प्रति टन रह गईं।
पिछले कुछ हफ्तों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में ज्यादातर दालों की कीमतें 10-15 प्रतिशत कम हैं। घरेलू बाजार में दलहन की कीमतें थामने के प्रयासों और आयात सीमा तय होने के बाद कीमतों में कमी देखी गई है।
इससे पहले 5 अगस्त को सरकार ने अरहर दाल को प्रतिबंधित जिंसों की सूची में डाल दिया था और चालू वित्त वर्ष के लिए इसकी आयात सीमा मात्र 2 लाख टन तय कर दी थी।
इसके बाद सोमवार को उड़द और मूंग दालें भी प्रतिबंधित जिसों की सूची में डाल दी गईं और चालू वित्त वर्ष के लिए इनकी आयात सीमा सालाना 3 लाख टन तय कर दी गई।
5 अगस्त के बाद अरहर की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं और अब हाजिर बार में उड़द और मूंग की कीमतों में भी तेजी आई है। सरकार ने लगभग 4 साल बाद अरहर के आयात की सीमा तय की थी। इससे पहले 1977 में आयात पर पाबंदी लगाई गई थी।
इंडिया पल्सेस ऐंड ग्रेंस एसोसिएशन (आईपीजीए) के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2016 में दलहन आयात 57 लाख टन रहा था जबकि वित्त वर्ष 17 की पहली तीन तिमाहियों में यह आंकड़ा 54 लाख टन था।
दलहन कारोबारियों के अनुसार मार्च 2017 तिमाही में 6 लाख टन दाल का आयात होने का अनुमान था। इस सत्र में किसानों ने दलहन का रकबा 1.07 करोड़ हेक्टेयर से बढ़ाकर 1.14 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है। हालांकि अरहर का रकबा फिर भी कम रहा है।