बिगड़ती रही सेहत लेकिन इरादा नहीं बदला, अब अनुभव बनेगा आईआईटीयन

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कोटा। जिद और जुनून हो तो हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ करके दिखाया है एलन के छात्र अनुभव ने जो कि दो साल तक बीमारी से परेशान होता रहा लेकिन कभी पढ़ाई और कोटा छोड़ने का मन नहीं बनाया। इस जिद का परिणाम ही है कि आज सपना पूरा हो गया है और अब आईआईटी मुम्बई से बीटेक करेगा। मूलतः छत्तीसगढ़ निवासी अनुभव चन्द्राकर ने जेईई एडवांस्ड में ओबीसी कैटेगिरी में 1030 तथा जनरल कैटेगिरी में 6050 रैंक प्राप्त की है।

एस्ट्रो फिजिक्स के अध्ययन में रूचि रखने वाला अनुभव अब आईआईटी मुम्बई में प्रवेश लेना चाहता है। छत्तीसगढ़ से कोटा आने का कारण यही था कि एस्ट्रो फिजिक्स में रिसर्च में जाना चाहता था, ये सब आईआईटी में पढ़कर ही संभव था, आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा आया और एलन में एडमिशन लिया और सपना साकार किया।

एडवांस्ड के पहले कई चुनौतियां
दो साल से जिस परीक्षा की तैयारी में जुटा था, वो परीक्षा आने से पहले बहुत चुनौतियां सामने आई। दो महीने पहले मैं बीमार हुआ और कमजोरी के कारण एक दिन चकराकर सीढ़ियां से गिर गया। मेरे सीधे हाथ के मसल्स में चोट आई। लिखने में परेशानी होने लगी। कुछ ही दिनों बाद जेईई-मेंस हुआ, मुझसे लिखा नहीं गया और इस कारण मेरी पर्सेन्टाइल डाउन हुई। जनवरी जेईई-मेंस में मेरी पर्सेन्टाइल 99.3 रही थी जो सितम्बर जेईई-मेंस में डाउन होकर 96 से भी नीचे चली गई। इसके बाद जेईई एडवांस्ड था, मैं घबरा सा गया था कि यदि ऐसा ही रहा तो क्या होगा। इसके बाद मैंने खुद को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया। डॉक्टर्स की सलाह पर डाइट लेता, एक्सरसाइज की, फिजियोथैरेपी करवाई, खुद को एनर्जेटिक रखने के लिए कॉफी पिता, सप्लीमेंट्स व विटामिन लिए और पढ़ाई की।

पेनकिलर लेकर दिया एग्जाम
एडवांस्ड के एग्जाम के दिन पहला पेपर दिया तो भी हाथ में बहुत दर्द हुआ लेकिन मैंने दर्द सह लिया और परीक्षा दे दी। जब दूसरे पेपर की बारी आई तो फिर मैंने पेन किलर ली ताकि दर्द के चलते मेरी परफेरमेंस प्रभावित नहीं हो। पेन किलर के बाद ही मैं ठीक से परीक्षा दे सका।

कोरोना तो नहीं हो जाएगा
एडवांस्ड से पहले मैं इतना नकारात्मक हो गया था कि लगता था कि कोरोना तो नहीं हो जाएगा। ऐसे में मां ने सपोर्ट किया और कहा कि सकारात्मक सोचो जो भी होगा अच्छा होगा और मैं तैयारी में जुटा रहा। एलन फैकल्टीज भी मेरी मदद करते और मुझे पढ़ाई करने के लिए प्रोत्सहित करते। मां शीतल चन्द्राकर गृहिणी हैं और दो साल तक मेरे साथ कोटा रहीं। पिता बृजेश चन्द्राकर गोवा में प्राइवेट कंपनी में जॉब करते हैं।

कोटा आते ही बीमारियों ने घेरा
दसवीं की पढ़ाई के बाद जब कोटा आया तो कुछ ही महीनों के बाद बीमार हो गया। लगातार बीमार रहने लगा। डॉक्टर्स को दिखाया, फुल बॉडी चैकअप भी हुए, फिर डॉक्टर्स ने कहा तुम्हें कोटा का हवा-पानी रास नहीं आ रहा है, घर वालों ने कहा कि घर चलकर तैयारी कर लो लेकिन मैंने पढ़ाई छोड़ना उचित नहीं समझा। तीन महीने बीमारी के बाद मैं फिर से ठीक होने लगा और तैयारी जारी रखी। एलन में टेस्ट में मेरी रैकिंग में सुधार मुझे मोटिवेट करती। बीमारी में जब रैंक गिर जाती तो और मेहनत करता और बेहतर रैंक लाता। विशेषरूप से गर्मियों में मैं बीमार रहता, लेकिन कभी मैंने हिम्मत नहीं हारी।