नारी की नहीं, मर्दों की अग्निपरीक्षा होनी चाहिए -सुनील लहरी

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मुंबई। लॉकडाउन में दूरदर्शन पर रामानंद सागर की ‘रामायण’ का दोबारा टेलिकास्ट किया गया और रावण के वध के बाद श्रीराम, हनुमान को रावण के वध का समाचार लेकर सीता के पास अशोक वाटिका भेजते हैं। इधर राम, भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि अग्नि का प्रबंध करें, ताकि सीता अग्नि को लांघकर उनके पास आ जाए। यह सुनते ही लक्ष्मण राम पर आगबबूला हो जाते हैं। दरअसल, लक्ष्मण यानी सुनील लहरी इस सीन की शूटिंग से पहले अपने डायरेक्टर रामानंद सागर से झगड़ पड़े थे। सुनील इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे कि रामायण में सीता की अग्निपरीक्षा का कोई सीन हो।

सीता माता की अग्निपरीक्षा के खिलाफ था मैं
लक्ष्मण ने बताया, ‘दूरदर्शन में प्रसारित रामायण के एपिसोड में सीता माता की अग्निपरीक्षा का सीन था। यह सीन मेरे लिए बहुत मुश्किल था, सबसे पहली मुश्किल यह थी कि रामायण के इस अध्याय से मैं सहमत नहीं था। मुझे लग रहा था सीता माता की अग्नि परीक्षा कतई नहीं होनी चाहिए।’

क्यों जरूरी थी अग्निपरीक्षा
‘यह माता के सम्मान में नहीं है। इस बात को लेकर निर्माता -निर्देशक डॉ रामानंद सागर जी से मेरा तर्क-वितर्क भी हुआ था। मैंने पापाजी ( रामानंद सागर ) से पूछा कि आखिर क्यों करना है, सीता माता की अग्नि परीक्षा। वह तो खुद भगवान का अवतार हैं, माता लक्ष्मी हैं और यह सब तो रावण के संहार के लिए माया चल रही थी तो फिर अग्नि परीक्षा क्यों की जाए।’

अग्निपरीक्षा का मतलब
‘अग्नि परीक्षा का कोई मतलब नहीं। खास तौर पर एक नारी के आत्म सम्मान के लिए यह बात बिल्कुल गलत है। अग्नि परीक्षा का मतलब यह है कि माता सीता के चरित्र पर किसी तरह का संदेह है। रावण को इतना अमीर, बलशाली, बुद्धिमान और साहसी दिखाया गया है, जिससे यह लगता है कि शायद कहीं गलत हुआ है, जब अग्नि परीक्षा होगी, तभी सीता माता की पवित्रता दिखाई देगी।’

सागर साहब ने मेरी बात को समझा
‘मैंने जब अग्निपरीक्षा की बात को सागर साहब के सामने उठाया तो उन्होंने मेरे विचारों को समझा और बड़ी चर्चा हुई, कई तर्क-वितर्क थे। तब जाकर सागर साहब ने यह तय किया कि अग्निपरीक्षा को जस्टिफाई करना बहुत ही आवश्यक है। वह समझ गए थे कि अग्नि परीक्षा का क्लेरिफिकेशन देना बहुत महत्वपूर्ण है। सामान्य तौर पर भी यह बहुत बड़ी बात है। एक नारी के सम्मान को धक्का है।’

उत्तर रामायण के दौरान भी भड़क गया था मैं
‘ऐसा ही उत्तर रामायण में भी हुआ था, जब एक धोबी के कहने पर राम ने गर्भवती सीता को वनवास भेज दिया था। तब भी यह सवाल उठा था कि जब अग्निपरीक्षा माता सीता ने दे दी है तो अब यह वनवास क्यों, उस समय भी क्लेरिफिकेशन दिया गया और बताया गया कि राजा, सदैव एक प्रजा का होता है और एक पति एक नारी का होता है। तब यह बहुत ही सुंदर ढंग से दिखाया गया कि एक राजा के फर्ज के हिसाब से उनको न चाहते हुए भी सीता का त्याग करना ही पड़ेगा।’

मर्दों की अग्निपरीक्षा होनी चाहिए
‘नारी आज भी अग्निपरीक्षा दे रही है, जो नहीं होनी चाहिए। नारी की नहीं बल्कि नर की अग्निपरीक्षा होनी चाहिए, क्योंकि नारी नहीं, बल्कि नर ज्यादा बहकते हैं। नारियों के अंदर बहुत ज्यादा सहनशीलता और कंट्रोल पावर बहुत होता है, यह बात नर में नहीं होती है। सदियों से नारी को थोड़ा नीचे समझा गया है, आज थोड़ा-थोड़ा बदलाव हो रहा है। आज की महिलाओं ने साबित कर दिया है कि वह मर्द से आगे हैं। नारी जननी है, यह गौरव किसी नर को नहीं मिल सकता, चाहे कोई कितना भी सिर पटक ले। वंश चलाने का, मां बनने का जो हक है, वह नारी है, नारी भगवान से भी ज्यादा पूज्यनीय है।’