नई दिल्ली। कच्चे तेल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। दूसरी तरफ 4 नवंबर से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लग जाएगा। उसके बाद भारत ईरान से तेल खरीदता है तो उसे अमेरिका से कारोबारी संबंध खराब होने की आशंका है। अगर ईरान से तेल नहीं खरीदता है तो अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है। ऐसे में भारत चीन के साथ मिलकर ऑयल बॉयर्स क्लब बनाने पर विचार कर रहा है।
क्योंकि भारत व चीन एशिया के बड़े ऑयल खरीदार देश हैं। इस संबंध में भारत और चीन के बीच मंत्रालय स्तर पर बातचीत की गई है। पेट्रोलियम मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक ऑयल बॉयर्स क्लब बनाने को लेकर भारत एवं चीन के बीच मंत्रालय स्तर के साथ कंपनी स्तर पर भी बातचीत हुई है। इसकी संभावना तलाशी जा रही है।
ऑयल बॉयर्स क्लब बनने के बाद दोनों ही देश ऑयल बेचने वाले देश से आसानी से मोलभाव कर सकेंगे। यह क्लब एशियाई देशों के लिए ऑयल के भाव तय करने में सहायक हो सकता है। पेट्रोलियम मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक दोनों ही देशों ने ऑयल बॉयर्स क्लब के गठन को लेकर दिलचस्पी दिखाई है क्योंकि बढ़ते कच्चे तेल और गैस की कीमतों से दोनों ही देश परेशान हैं।
पेट्रोलियम मंत्रालय के मुताबिक भारत ने वित्त वर्ष 2014-15 में क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की खरीदारी में 6,87416 करोड़ रुपये खर्च किए। वित्त वर्ष 2015-16 में यह खर्च 4,16,579 करोड़ रहा। वित्त वर्ष 2016-17 में यह खर्च 4,70159 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया तो वित्त वर्ष 2017-18 में यह खर्च 5,65,951 करोड़ रहा।
ईरान के सबसे बड़े ग्राहक चीन व भारत
ईरान से सबसे अधिक कच्चे तेल की खरीदारी चीन करता है। दूसरा नंबर भारत का है। लेकिन 4 नवंबर के बाद से ईरान से तेल खरीदने पर अमेरिका से कारोबारी रिश्ते खराब हो सकते हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक ईरान से 80 लाख टन तेल खरीदारी का कांट्रैक्ट भारत पहले ही कर चुका है।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक भारत ईरान से तेल खरीदारी को जारी रखने के लिए अमेरिका से बातचीत कर रहा है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि भारत नवंबर व दिसंबर माह के लिए ईरान को तेल का ऑर्डर नहीं दे सकता है।
अगर अमेरिका मान जाता है तो भारत अगले जनवरी से ही ईरान से तेल की खरीदारी कर पाएगा। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में भारत को ईरान से 120 लाख टन तेल की खरीदारी करनी थी। भारत 80 लाख टन का ऑर्डर पहले ही दे चुका है।
भारत के लिए ईरान क्यों है महत्वपूर्ण
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक ईरान भारत को कई प्रकार के लाइट व हेवी क्रूड ऑफर करता है जिसकी कीमत दूसरे ऑयल उत्पादक देशों के मुकाबले कम होती है। वहीं, भारत को भुगतान करने के लिए ईरान अच्छा-खासा समय देता है।
ईरान की जगह किसी और देश से तेल खरीदने पर भारत को अधिक कीमत चुकानी होगी जो इस समय के लिए घातक साबित हो सकता है क्योंकि घरेलू स्तर पर पेट्रोल व डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं।
ईरान से तेल खरीदारी बंद करने पर भारत को आर्गेनाइजेशंस ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्ट कंट्रीज (ओपेक) के पास जाना पड़ेगा जो किसी भी एशियाई देशों को तेल बेचने पर अधिक कीमत वसूलते हैं। ओपेक अमेरिका व किसी यूरोपीय रिफाइनरी के मुकाबले एशियाई देशों से प्रति बैरल 6 डॉलर अधिक कीमत लेते है।
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक प्रति बैरल कीमत में 1 डॉलर का उतार-चढ़ाव होने से इंपोर्ट बिल में सालाना 10,880 करोड़ रुपये का फर्क आ जाता है।