नई दिल्ली। दालों के उत्पादन और अंतिम उपभोग के बीच के अंतर को कम करने के लिए केंद्र सरकार दालों का उत्पादन करने वाले राज्यों में मिलिंग क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही है। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि बाजार में बिना मिलिंग वाली दालों की बिक्री के बाद उनके अंतिम उपभोग तक पहुंचने में कम समय लगेगा।
भारत में करीब 10,000 दाल मिलें हैं जिनमें से प्रत्येक की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन 10-20 टन है। दालों की अधिकतर मिलिंग में फलियों को दो भागों में विभाजित करना और बीज को निकालना शामिल रहता है। परंपरागत मिलों में कई बार इस प्रक्रिया के जरिये केवल 65-70 प्रतिशत का ही उत्पादन हो पाता है, जबकि आधुनिक मिलों में यह उत्पादन बढ़कर 90 प्रतिशत तक हो जाता है।
दूसरे शब्दों में अपर्याप्त आधुनिक मिलिंग सुविधा की वजह से कुल उत्पादन का तकरीबन 25-30 प्रतिशत हिस्सा बेकार हो जाता है। हाल में बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि इस साल अधिक उत्पादन के बावजूद कुछ खुदरा बाजारों में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी ज्यादा हैं। अपर्याप्त मिलिंग क्षमता के कारण ऐसा हो सकता है।
इसकी वजह से अंतिम उत्पाद के लक्ष्य तक पहुंचने में देरी होती है। उनका कहना है कि सरकार शीघ्र ही सभी भागीदारों के साथ विचार-विमर्श की पहल करेगी और दालों का उत्पादन करने वाले राज्यों में आधुनिक मिलिंग सुविधाओं के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विस्तृत नीति पर भी विचार किया जा सकता है। देश में 80 प्रतिशत से ज्यादा दाल राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से आती हैं।
पासवान ने कहा कि 2016-17 में भारत का कुल दलहन उत्पादन 2.24 करोड़ टन रहने का अनुमान जताया गया है जिसमें आयात का 50 लाख टन जोड़ दें तो कुल उपलब्धता 2.74 करोड़ टन हो जाती है, जबकि उपभोग करीब 2.46 करोड़ टन रहने का अनुमान है। इसका अर्थ यह निकलता है कि तकरीबन 28 लाख टन का आधिक्य रहेगा। हालांकि इसके बावजूद कुछ खुदरा बाजारों में कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा बनी हुई हैं।