कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति द्वारा चातुर्मास के अवसर पर जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन सुनाते हुए वायु के प्रभाव पर अपनी बात कही।
उन्होंने कहा कि आप किसी से प्रभावित हो या कोई आप से प्रभावित है यह आकर्षण पर निर्भर करता है। हमारे जीवन में वायु का प्रभाव बहुत होता है। हम बिना खाने व पानी से दिन गुजार सकते हैं, परन्तु बिना वायु के कुछ मिनट जीना भी असंभव है। वायु जीवन का आधार है। जीवन में वायु सही दिशा में चल रही हो तो जीवन सही चलता है और गलत दिशा में चल रही हो तो जीवन गलत दिशा में चलता है।
उन्होने बताया कि वायु तीन तरह की होती है। एक वह जो लौकिक है, जो आपके प्राणों का आधार है। दूसरी कर्म जनित वायु व तीसरी चेतना जनित वायु होती है। जीवन जिस पर टिका है। संसार में समस्त निर्माण के लिए आवश्यक है व लौकिक वायु है। कर्म जनित वायु वह होती है, जिससे आपके सुख व दुख निर्धारित होते हैं।
आपके कर्मोंं का फल कर्म जनित वायु है। राम ने पुण्य रूपी वायु का उपयोग किया और रावण ने पाप रूपी वायु का इस्तेमाल किया। इसलिए उनकी गति कर्मानुसार हुई। तीसरी वायु चेतन जनित होती है जो ईश्वर से आपको मिलती है, मोक्ष का राह प्रशस्त करती है। यह आत्म चिंतन, साधना, प्रभु भक्ति से पैदा होती है।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला सहित कई श्रावक उपस्थित रहे।