कोटा। वो समय बीत गया जब महिलाएं घर की दहलीज तक सीमित थी। घर से बाहर निकलकर किसी भी प्रकार का जाॅब और बिजनेस तक नहीं कर सकती थी। अब महिलाओं का जज्बा इतना है कि वो अपने हौसलों और हिम्मत से घर-परिवार और महिलाओं की संबल बनी हुई हैं।
ऐसी महिलाओं ने अपने जीवन में चुनौतियां स्वीकारी और स्वयं के अलावा अपने समूहों से जुड़ी महिलाओं को भी आर्थिक मजबूती प्रदान कर मुकाम हासिल किया। महिला अधिकारिता विभाग की ओर से गवर्नमेंट म्यूजियम के पास ग्रामीण हाट में लगाई एग्जीबिशन में ऐसी ही महिलाओं की कामयाबी देखने को मिली।
इनमें शहर की दादाबाड़ी निवासी भंवर कंवर हैं, जिन्होंने पति के व्यवसाय में नुकसान होने पर परिवार को संभाला। वहीं, सवाईमाधोपुर की सुनीता ने पति की मौत के बाद बच्चों को पढ़ाकर नौकरी दिलवाई और बेटियों के हाथ पीले किए। यहहै उनकी जुबानी संघर्ष की कहानी….।
2700 रु. से शुरू किया काम, आज 27 लाख का टर्न ओवर
दादाबाड़ी निवासी भंवर कंवर ने बताया कि पति के बिजनेस में करीब 22 लाख का नुकसान हुआ। ऐसे में मकान बिक गया। परिवार में चिंता हो गई कि अब क्या करेंगे, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी घूंघट और पर्दे से बाहर निकलकर अचार बनाने की ट्रेनिंग ली।
मेरे पास 2700 रुपए थे, इसी से अचार बनाने का कार्य शुरू किया। इसकी क्वालिटी इतनी बेहतरीन थी कि जो भी चखता दुबारा अवश्य मंगवाता। अब मेरे साथ 15 महिलाओं का समूह है, जो इससे जुड़ी हैं और उन्हें भी आर्थिक संबल मिल गया है। आज 27 लाख रुपए का टर्नआेवर हो चुका है।
500 रुपए उधार मांग हैंडमेड प्रोडक्ट बनाए
सवाई माधोपुर निवासी सुनीता का कहना है कि जोड़-तोड़ कर जो पैसा था, पति के इलाज में लगाया, लेकिन वो नहीं बच सके। परिवार में चार बच्चों की जिम्मेदारियां गई। ऐसी स्थिति थी कि मेरे पास 100 रुपए तक नहीं थे। बच्चों को देख मैं टूटी नहीं और हौसला रखा।
हिम्मत कर मैंने 500 रुपए उधार लेकर लकड़ी और जर्मनी केमिकल से आइटम बनाना सीखा और अमृता हाट में इन्हें बेचना शुरू किया। इसमें महिलाओं को जोड़ा। अब यह बिजनेस इतना हो चुका है कि जयपुर, उदयपुर और दिल्ली से डिमांड रही है। इसके बाद बेटे को पढ़ाया और उसकी नौकरी लग गई। दो बेटियों की शादी कर दी।