आपदा को अवसर में बदल लें तो, विपत्ति भी संपत्ति बन जाती है: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से आयोजित चातुर्मास के मौके पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रचवन सुनाते हुए कहा कि विपत्तियां, सम्पति देने आती है। बस मनुष्य मे कला होनी चाहिए। वह कैसे विपत्ति को सम्पति और आपदा को अवसर में बदले। यदि आपके पास कला नहीं है तो अवसर भी आपदा बन जाते हैं।

उन्होने कहा कि वायु व पानी को कोई रोक नहीं सकता है। उसी प्रकार जीवन में विपत्तियों के क्रम निश्चित है, उन्हें कोई रोक नही सकता है। जीवन की थाली में मिला है उसका सेवन करें। उसे संक्लेशषता न समझें। हर विपत्ति अभिशाप नहीं होती है। विपत्ति वरदान होती है। वह आपकी शक्तियों को बढाने के लिए आती है।

​विपत्तियों को सम्पत्ति समझ इससे भयभीत व दुखी नहीं होना चाहिए। अग्नि मे तप कर ही सोना कुंदन बनता है। जहां से विपत्तियां आती हैं वहां से समाधान भी आता है। कार्यक्रम का संचालन पारस कासलीवाल ने किया।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष के देवेंद्र जैन, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, निर्मल अजमेरा, सुनील प्रभावना सहित कई लोग उपस्थित रहे।