भगवान गौर निताई के अभिषेक के साथ हर्षोल्लास से मना गौर पूर्णिमा उत्सव

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कोटा। हरे कृष्ण मंदिर, मुकुंदरा विहार कोटा में श्री गौर पूर्णिमा महोत्सव भक्तिमय माहौल में मनाया गया। चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य दिवस के अवसर पर विशेष आयोजन में हजारों भक्तों ने भाग लिया और दिव्य उत्सव का आनंद लिया।

मंदिर में भगवान निताई गौरांग का वैदिक मंत्रोच्चार के साथ महाभिषेक किया गया। इस पावन अवसर पर भक्तों ने शाम तक उपवास रखते हुए हरे कृष्ण महामंत्र का अधिकाधिक जाप किया। भगवान गौर निताई के उत्सव विग्रह का भव्य अभिषेक समारोह शाम 7:00 बजे संकीर्तन के साथ प्रारंभ हुआ।

अभिषेक में पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और मीठा पानी), पंचगव्य, विभिन्न प्रकार के फलों के रस, औषधियों (जड़ी-बूटियों) के साथ मिश्रित जल और नारियल पानी का उपयोग किया गया। ब्रह्म संहिता की मधुर प्रार्थनाओं के बीच श्री गौर निताई को 108 कलशों के पवित्र जल से अभिषेक किया गया, जिसने उपस्थित सभी भक्तों के हृदय को प्रफुल्लित कर दिया।

फूलों की होली का अद्भुत दृश्य
अभिषेक समारोह के समापन पर भगवान पर विविध रंगों के फूलों की वर्षा की गई। उत्साह और भक्ति से ओतप्रोत माहौल में 1000 किलो से भी अधिक विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों से भगवान गौर निताई ने भक्तों संग फूलों की होली खेली। मंदिर परिसर फूलों की सुगंध और रंगों से सराबोर हो गया।

भगवान की पालकी का भव्य स्वागत
भगवान की पालकी पर सवारी निकाली गई, जिसका भक्तों ने “हरे कृष्णा” और “हरे रामा” की मंगलमय ध्वनियों से भव्य स्वागत किया। मंदिर परिसर भक्ति रस में डूबा हुआ था, और भक्तों के उत्साह का कोई पारावार नहीं था। पीतवर्ण की पोशाक में गौरांग महाप्रभु ने सभी भक्तों को मनमोहित कर दिया, और उन्हें 151 प्रकार के भोग अर्पित किए गए, जिसके बाद राजभोग आरती संपन्न हुई।

श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का प्रसार
मंदिर के उपाध्यक्ष राधाप्रिय दास ने अपने प्रवचन में बताया कि चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य 1534 ईस्वी में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन नदिया (पश्चिम बंगाल) जिले के नवद्वीप गांव में माता सची और जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र के रूप में हुआ था। उन्होंने कहा, “विश्व भर में श्री हरिनाम संकीर्तन श्री चैतन्य महाप्रभु की ही आचरण युक्त देन है। उन्होंने कलियुग के जीवों के मंगल के लिए ही उन्हें श्रीकृष्ण प्रेम प्रदान किया है। वह सांसारिक वस्तु प्रदाता नहीं बल्कि करुणा और भक्ति के प्रदाता हैं।” उन्होंने आगे बताया, “भगवान श्रीकृष्ण नवद्वीप में चैतन्य महाप्रभु के रूप में संकीर्तन आंदोलन की स्थापना के लिए प्रकट हुए। भगवान चैतन्य और भगवान कृष्ण की शिक्षाओं में कोई अंतर नहीं है। चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का व्यावहारिक प्रदर्शन हैं।”

कलियुग में हरिनाम संकीर्तन का महत्व
श्री राधाप्रिय दास ने कलियुग में हरिनाम संकीर्तन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, “कलियुग में धार्मिक अनुष्ठानों में लोगों की रुचि नहीं रही, किन्तु हरे कृष्ण का कीर्तन कहीं भी और कभी भी सुगम तरीके से किया जा सकता है। इस प्रकार श्री चैतन्य की पूजा करते हुए लोग सर्वोच्च कर्म कर सकते हैं और परमेश्वर श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का सर्वोच्च धार्मिक प्रयोजन पूरा कर सकते हैं।”उन्होंने सभी भक्तों को हरे कृष्ण महामंत्र “हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे” के जाप का आह्वान किया।

भक्तों की अभूतपूर्व भागीदारी
मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे और उन्होंने भक्ति भाव से कार्यक्रम में हिस्सा लिया। महोत्सव के दौरान भक्तों की आँखों में चैतन्य महाप्रभु के प्रति अगाध श्रद्धा और समर्पण का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था। समारोह के अंत में मंदिर में आए सभी भक्तों के लिए प्रसाद वितरण किया गया, जिसे ग्रहण कर भक्तगण धन्य हुए।