इस बार 93 फीसदी सांसद करोड़पति, सरोज अब तक की सबसे कम उम्र की सांसद

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नई दिल्ली। इस बार लोक सभा में पहुंचे हर 10 में से 9 सांसद के पास 1 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के आंकड़े दर्शाते हैं कि करोड़पति सांसदों की हिस्सेदारी 93 फीसदी हो गई है। यह पिछले चुनावों में 88 फीसदी थी। साल 2009 में करीब 58 फीसदी सांसद करोड़पति थे।

साल 2014 के 14.7 करोड़ रुपये की तुलना में इस बार विजेताओं के पास औसत 46.3 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति है। बदलते समय के साथ प्रत्याशियों की औसत संपत्ति में भी इजाफा हुआ है। यह साल 2024 में 6.23 करोड़ रुपये है, जो साल 2019 में 4.14 करोड़ रुपये थी। उससे पहले साल 2014 में 4.92 करोड़ रुपये और साल 2009 में 1.11 करोड़ रुपये थी।

साल 2009 में सबसे अमीर प्रत्याशी वीएम सिंह थे, जिनके पास 632 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति थी। साल 2014 के चुनावों में आईटी सेवा कंपनी इन्फोसिस (Infosys) के सह-संस्थापक नंदन नीलकेणी सबसे अमीर प्रत्याशियों में से एक थे। नीलकेणी के पास 7,710 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति थी। साल 2019 के लोक सभा चुनावों में रमेश शर्मा सबसे अमीर प्रत्याशी थे, जिनके पास कुल 1,108 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति थी। इस साल 5,705 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति के साथ डॉ. चंद्रशेखर पेम्मासानि सबसे धनाढ्य प्रत्याशी हैं।

58 सांसद की आयु 40 साल से कम
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों से पता चलता है कि सभी सांसदों में से 52 फीसदी सांसदों की उम्र 55 वर्ष से अधिक है। 58 विजेता ऐसे हैं जिनकी आयु 40 साल या उससे कम है।बिहार के समस्तीपुर से शाम्भवी, उत्तर प्रदेश के कौशांबी से पुष्पेंद्र सरोज और उत्तर प्रदेश के ही मछलीशहर से प्रिया सरोज अब तक के सबसे उम्र के संसद सदस्य हैं। तीन अनुसूचित जाति से हैं और आरक्षित सीट से संसद पहुंचे हैं। तमिलनाडु के श्रीपेरूम्बुदूर सीट से टीआर बालू सबसे ज्यादा उम्र के सांसद बने हैं।

78 फीसदी सांसद स्नातक
PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार निर्वाचित सदस्यों में कॉलेज तक की पढ़ाई करने वाले अधिक है। साल 2024 में 78 फीसदी सांसद स्नातक हैं। यह साल 2019 में 72 फीसदी था। हालांकि, यह साल 2009 के 79 फीसदी से कम है।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारत की 18वीं लोकसभा में पिछली लोकसभा की तुलना में अधिक पुरुष हैं। इस बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली कुल 797 महिलाओं में से 10 फीसदी से भी कम यानी 74 महिलाएं ही जीत दर्ज कर सकीं। इसका मतलब है कि यह पिछले चुनाव की तुलना में कम संख्या है। महिला आरक्षण विधेयक के तहत लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षित सभी सीटों में से 33 फीसदी के लक्ष्य से महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है।