–कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के तीसरे सबसे बड़े शहर कोटा को कैटल फ़्री (Cattle Free City Kota) बनाने की योजना को किसी तैयारी और प्रबंध के अभाव में लागू करने की कोशिशें की जा रही हैं। यही वजह है कि जिला कलक्टर के कोटा शहर को आवारा मवेशियों से मुक्त करवाने के लिए अभियान छेड़ने का आदेश जारी किए तकरीबन एक सप्ताह बीत जाने के बावजूद अभी तक शहर की दोनों गौशालाओं (कायन हाउस) में शहर में कहीं से भी एक भी आवारा मवेशी को पकड़कर नहीं लाया जा सका है।
नगरीय एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल की पहल पर कोटा को प्रदेश का पहला कैटल फ्री शहर बनाने की योजना बनाई गई थी और इस योजना पर अमल करने के लिए करीब 300 करोड़ रुपए की मोटी रकम खर्च करके शहर के बाहरी इलाके में देवनारायण आवासीय-पशुपालन योजना के तहत आवास एवं बाड़े बनाए गए थे। इसके पहले चरण का काम पूरा हो जाने के बाद आवंटन भी कर दिया गया है, लेकिन अभी तक शहर को कैटल फ्री करने की कोशिश आगे बढ़ती नजर नहीं आ रही है।
अभी भी सड़कों पर पूर्ववत शहरी इलाकों में घरों में पाले गए मवेशी दूध दोहे जाने के बाद सड़कों पर आवारा डोलते या सड़कों के बीच बैठकर जुगाली करते हुए नजर आते हैं। बिना किसी तैयारी और प्रबंध के जिला प्रशासन सहित कोटा नगर निगम और कोटा नगर विकास न्यास प्रशासन की ओर से आवारा मवेशियों की धरपकड़ के कोशिशों का कोटा नगर निगम (दक्षिण) की गौशाला समिति के सदस्य कड़ा विरोध कर रहे हैं।
इस बारे में गौशाला समिति के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जीतू के नेतृत्व में सोमवार को समिति के सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल ज्ञापन देने के लिए कोटा नगर निगम (दक्षिण) कार्यालय पहुंचा था, लेकिन नगर निगम (दक्षिण) के आयुक्त और उपायुक्त दोनों के ही कार्यालय में अनुपस्थित नहीं होने के कारण वे अपने ज्ञापन के प्रति उनके कार्यालयों के बाहर चस्पा कर के लौट आए हैं।
जितेंद्र सिंह जीतू ने बताया कि नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री श्री धारीवाल की कोटा शहर को कैटल फ्री करने की योजना बेमिसाल है, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस योजना को लागू करने की तैयारियां लगभग सिफर है। कोटा में बंधा-धर्मपुरा में गौशाला होने के अलावा शहर के भीतर किशोरपुरा में कायन हाऊस है, जहां शहर के विभिन्न हिस्सों से पकड़े गए मवेशियों को रखा जा सकता है।
इन दोनों ही स्थानों पर पहले से ही उनकी क्षमताओं से अधिक मवेशी होने के कारण अब यदि शहर के अलग-अलग हिस्सों से पकड़कर मवेशी लाए गए तो उन्हें कहां रखा जाएगा। इस बारे में कोई तैयारी किए बिना ही प्रशासनिक अधिकारी अपने दफ्तरों में बैठे-बैठे ही घेरा डालकर कर्मचारियों और पशु पकड़ने का काम करने वाले ठेकेदारों को आदेश जारी कर रहे हैं। जबकि, जमीनी हकीकत यह है कि इन मवेशियों को लाकर रखे जाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
एक बड़ी हास्यास्पद स्थिति यह है कि प्रशासन ने कोटा नगर विकास न्यास को भी आवारा मवेशियों की धरपकड़ के इस अभियान में शामिल होने को कहा है। जबकि, वास्तविकता यह है कि नगर विकास न्यास के पास इन आवारा मवेशियों को पकड़ कर लाए जाने के बाद रखने की अपनी कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो ऐसे में वे इन मवेशियों को रखने के लिए कोटा नगर निगम की गौशाला के ऊपर ही निर्भर है, जहां पहले से ही जगह की कमी है।
जितेंद्र सिंह ने बताया कि बंदा की गौशाला में आमतौर पर 1800 से 2000 तक गोवंश रहते हैं और इन गोवंश को भूसा खिलाने के लिए कम से कम छह हजार फीट सराल (भूसा ड़ालने की जगह) की जरूरत होती है। वर्तमान में इस गौशाला में केवल 5229 फ़ीट की ही सराल है और इसमें से भी लगभग 500 फीट की सराल क्षतिग्रस्त हो चुकी है जिसकी मरम्मत का काम इन दिनों चल रहा है।
शेष बची सराल भी यहां रखे गए मवेशियों को चारा खिलाने के दृष्टि से अपर्याप्त है। इसके बावजूद यदि इस गौशाला में अतिरिक्त मवेशी लाने की कोशिश की गई तो निश्चित रूप से चारा-पानी के सेवन के लिए मवेशियों के बीच आपसी संघर्ष और उससे मवेशियों की मौत होना तय है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि नगर निगम प्रशासन जिला प्रशासन के बड़े अफसरों के दबाव में जैसे-तैसे गौशाला में मवेशियों को ठूस देने पर आमादा है।
लेकिन, जब मवेशी मरेंगे तो उसकी बदनामी का ठीकरा गौशाला समिति के जनप्रतिनिधियों के माथे ही फ़ूटेगा, जिसे समिति के सदस्य किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। प्रशासन को चाहिए कि पहले वह पकड़े जाने के बाद मवेशियों के रखने की व्यवस्था करें और यह व्यवस्था होने तक मवेशियों की पकड़ने की योजना को स्थगित रखें। इस बारे में समिति ने नगरीय विकास मंत्री श्री धारीवाल को भी अवगत करवा दिया है।