नई दिल्ली। रूस और युक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में गेहूं की कीमत बढ़ गई है। इस समय कई राज्यों में गेहूं की कीमत 22 रुपये से 30 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। इसके साथ ही गेहूं के डंठल से निकलने वाला भूसा जो कभी मुफ्त मिलता था आज गेहूं के भाव यानी 15 से 20 रुपये किलो तक पहुंंच गया है।
हरियाणा के किसान रणधीर सिंह राणा बताते हैं कि अब गेहूं की फसल में भूसा कम निकलता है। पहले गेहूं की देशी किस्म बोई जाती थी। उसमें गेहूं की बाली तो छोटी होती थी, लेकिन फसल का डंठल बड़ा होता था। जब डंठल बड़ा होगा तो भूसा ज्यादा निकलेगा। अब जो संकर किस्म का गेहूं आ गया है, उसमें बाली तो बड़ी होती है। लेकिन डंठल छोटी हो गई है। इससे भूसा कम निकलने लगा हे।
कंबाइन हार्वेस्टर से बरबाद होता है भूसा
आज कल सभी बड़े किसान कंबाइन हार्वेस्टर से फसल की कटाई करवाते हैं। इसमें फायदा यह है कि गेहूं काटने के लिए अलग से मजदूर लगाने और थ्रेसिंग के लिए अलग से मजदूर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। कंबाइन से फसल काटने के साथ ही उसकी थ्रेसिंग भी हो जाती है। लेकिन इससे गेहूं की डंठल खेत में ही पड़ी रह जाती है। उसे फिर से रैपर से कटवा कर भूसा बनाना पड़ता है। इस चक्कर में भूसा कम हो जाता है।
इस बार गेहूं का रकबा घटा
इस बार जब गेहूं की बुवाई हो रही थी, उसी समय खाद्य तेल के बाजार में महसूस की जा रही थी। इसलिए ढेर सारे किसानों ने अपने खेत में गेहूं के बदले सरसों की बुवाई की। इससे सरसों का रकबा बढ़ा, सरसों की उपज बढ़ी और किसानों की कमाई भी बढ़ी। पिछले साल जो सरसों 45 रुपये किलो बिका था, उसी सरसों का दाम इस साल 75 रुपये किलो तक पहुंच गया। लेकिन इस चक्कर में गेहूं का कम उत्पादन हुआ। इसका असर भूसे पर भी पड़ा।
राणा बताते हैं कि इस साल शुरू में जब गेहूं कटना शुरू हुआ था, तब भूसा का दाम 11 रुपये किलो था। पिछले साल यह 7 रुपये किलो बिका था। उस समय किसान 11 रुपये किलो के दाम पर भी खुश थे, क्योंकि यह पिछले साल के मुकाबले बहुत ज्यादा था। लेकिन जैसे जैसे दिन बीतते गए, इसका दाम चढ़ता गया। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि पशुपालकों को 20 रुपये किलो भी भूसा मिल जाए तो वह गनीमत समझ रहे हैं। भूसा महंगा होने से पशुओं के लिए सूखे चारे की किल्लत पैदा हो गई है।