गिनती के 12 ग्रास लेती हैं विशुद्धमति माताजी

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कोटा। आर्यिका गणिनी विशुद्धमति माताजी गिनती के केवल 12 ग्रास ही ग्रहण करती हैं। जब तक संघ में शामिल शिष्याएं आहार नहीं करती हैं, वे आचार क्रिया नहीं करती हैं। उन्होंने मीठे, तेल और घी का परित्याग किया हुआ है। वे अब तक 40 से अधिक आर्यिकाओं को दीक्षा दे चुकी हैं।

विशुद्धमति माताजी का 50वां स्वर्णिम संयम दीक्षा महोत्सव कोटा के दशहरा मैदान में गुरूवार से प्रारंभ होगा। सकल दिगम्बर जैन समाज कोटा की ओर से आयोजित होने वाले तीन दिवसीय 50वें दीक्षा महोत्सव आराधना पर्व में 7 से 9 मार्च तक अलग अलग कार्यक्रम आयोजित होंगे। दस साल पूर्व 2008 में 9 दीक्षाएं कोटा में हुई थीं, उनके साधना के 10 वर्ष एवं विशुद्धमति माताजी के 50 वर्ष पूर्ण होने का महोत्सव कोटा में मनाया जा रहा है।

जीवन में हर तरह की कठिनाइयों को पार करती हुई माताजी ने संयम के 50वर्ष पूरे किए। संयम और महाव्रत के 50 वर्ष पूर्ण करना बहुत कष्टसाध्य होता है। सर्दी, गर्मी, बरसात तीनों मौसम के परीषह सहन करना पड़ता है। किसी प्रकार की मेडिकल का इलाज नहीं लेती। अगर अपनी साधना में कोई विघ्न आता है, तो साधु समाधि ले लेते है।

गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी की दीक्षा 1970 में आचार्य निर्मल सागर जी महाराज से हुई। उन्होंने अपनी चर्या, गुणों के माध्यम से रत्नात्रय धर्म को अंगीकृत किया। इन्होंने भारत व भारत के कई शहरों में चातुर्मास और साधना की और विहार किया। वर्ष 1949 में ग्वालियर में जन्म लेने वाली विशुद्धमति माताजी ने 4 वर्ष की आयु में कंदमूल ग्रहण करना बंद कर दिया था।

उन्होंने 14 वर्ष की आयु में ब्रह्मचर्य ग्रहण किया और 16 वर्ष की आयु में केशलोचन करा लिया। माताजी ने अपनी साधना से कईं रिद्धियां प्राप्त की हैं। विशुद्धमति माताजी अपनी साधनाचर्या में कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं करती। वे प्रातः 3 बजे उठकर अपनी ध्यान साधना में लीन हो जाती हैं। दिनभर अपनी साधना में लीन रहती है।

साहित्य क्षेत्र में माताजी के माध्यम से अनेक प्रकार के काव्यों की रचना की गई है। वे गणधर वलय स्तोत्र के जनक के रूप में जानी जाती है और अभी स्वर्णिम संयम महोत्सव में 1452 जोडे से गणधर वलय का विधान करेंगे। माताजी को समाज द्वारा अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया है।

उन्हें विदुषी, गणिनी पद, सम्यग्ज्ञान शिरोमणि, कुशल आगम वक्ता, वात्सल्य मूर्ति, सिद्धान्त रत्न, सर्वाधिक दीक्षा प्रदात्री, प्राचीन धर्म रक्षिका, रत्नत्रय चन्द्रिका, चरित्र चूरामणि, सम्यग्ज्ञान दीपिका, वात्यल्य विद्यानिधि, दीक्षा तीर्थ, गणिनी कुंजर, विद्यावारिधी, अध्यात्म योगिनी, ज्ञानलक्ष्मी, त्रिलोक कल्याणी, वात्यल्य चंद्रिका, चर्याशिरोमणि समेत अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया है।

विशुद्धमति माताजी के संघ में सभी आर्यिकाएं बाल ब्रह्मचारिणी हैं। वर्तमान में इनके संघ में आर्यिका विशिष्ठमति माताजी, विभूषणमति माताजी, विज्ञमति माताजी, विशौर्यमति माताजी, विजितमती माताजी, विदिमती माताजी, विरागमति माताजी, विकर्षमति माताजी, विशेषमति माताजी, विदुषीमति माताजी, विश्रुतमति माताजी रहती हैं।

दीक्षार्थियों की गोद भराई की
संयम दीक्षा महोत्सव के दौरान ब्रह्मचारिणी भाग्यवती और बाल ब्रह्मचारी उषा दीदी की जैनेश्वरी श्रमणी दीक्षा होगी। जिनकी मंगलवार को शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर बसंत विहार, जैन मंदिर तलवण्डी में गोद भराई की गई। महिला मंडलों सहयोग से दीक्षार्थी बहनों की बिनौली भी निकाली गई।

बसंत विहार मंदिर समिति के मंत्री जैनेन्द्र कुमार जैन ने बताया कि बिनौली में गाजे बाजे के साथ महिला पुरूष नाचते गाते और जयकारे लगाते चल रहे थे। इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष विमल जैन, कार्याध्यक्ष जेके जैन, कान्ता जैन, सुनीता जैन, अभिलाषा जैन, प्रेमलता जैन समेत कईं पदाधिकारी उपस्थित थे।