नई दिल्ली। विपक्षी दलों की ओर से निजी क्षेत्र पर साधी जा रही राजनीति के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि न सिर्फ उनकी क्षमताओं का भरपूर उपयोग होगा बल्कि सम्मान भी मिलेगा। आत्मनिर्भर भारत अभियान में निजी क्षेत्र से न सिर्फ अपेक्षाएं होंगी बल्कि सरकार की ओर से उन्हें सभी अवसर और सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी। सरकार की दिशा स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री ने नीति आयोग और बैठक में मौजूद मुख्यमंत्रियों से अपील की कि सहयोग और सामंजस्य की बयार केवल केंद्र और राज्य ही नहीं बल्कि जिला और ब्लाक स्तर तक बहनी चाहिए। वहीं केंद्र की दिशा और सोच की तर्ज पर ही राज्यों से भी बजट प्रविधान तैयार करने का सुझाव दिया।
नीति आयोग की गवर्निग काउंसिल की बैठक में प्रधानमंत्री ने यह संदेश भी दे दिया कि कृषि सुधार देश की जरूरत है। कोरोना से बाहर आ रहे देश में केंद्रीय बजट को लेकर काफी उत्साह दिखा। बाजार इसकी झलक दिखा रहा है। ऐसे में शनिवार को जब प्रधानमंत्री ने नीति आयोग और मुख्यमंत्रियों को संबोधित किया तो केंद्रबिंदु बजट ही था। उन्होंने कहा कि बजट से जिस तरह का सकारात्मक रुख दिखा है उसने जता दिया है कि मूड आफ नेशन क्या है। देश मन बना चुका है। देश तेजी से बढ़ना चाहता है। देश अब समय नहीं गंवाना चाहता है। निजी क्षेत्र भी आगे आ रहा है। सरकार के नाते हमें उसका सम्मान भी करना है और आत्मनिर्भर भारत में निजी क्षेत्र को उतना ही अवसर भी देना है।
प्रधानमंत्री का यह बयान खासा अहम है क्योंकि विपक्षी दल सरकार पर कारपोरेट के प्रति नरम होने का आरोप लगा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह साफ किया कि देश के विकास में सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हर स्तर पर प्रतिस्पर्धा पैदा करनी होगी। राज्य, राज्य से करें, जिला, जिला से और ब्लाक, ब्लाक से। निजी क्षेत्र में आपसी स्पर्धा बढ़े लेकिन गुणवत्ता इतनी होनी चाहिए कि भारत न सिर्फ उत्पादन करे बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य भी बने तभी आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धा के साथ सामंजस्य भी जरूरी है।
भरपूर लाभ उठाएं राज्य
उन्होंने कहा कि केंद्र ने आम बजट एक महीने पहले कर दिया है। ऐसे में अगर राज्य सरकारें उस बजट के साथ सामंजस्य पैदा करें तो लाभ दोगुना किया जा सकता है। इस क्रम में उन्होंने राज्यों को भी ऐसे कानूनों से मुक्त होने की अपील की जो निरर्थक हैं और बाधा खड़ी करते हैं। बैठक में कई विपक्षी दलों के भी मु्ख्यमंत्री थे, जो इसके खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं।
खाद्य आयात पर खर्च होने वाला पैसा किसानों को मिले
प्रधानमंत्री ने उनके सामने कृषि सुधार की जरूरत पर फिर से बल दिया और कहा कि कृषि प्रधान देश होने के बाद बावजूद भारत 65-70 हजार करोड़ का खाद्य तेल बाहर से लाता है। यह पैसा भारतीय किसानों की जेब में जा सकता है। लेकिन उसके लिए राज्यों को भौगोलिक और क्षेत्रीय पर्यावरण को देखते हुए रणनीति बनानी पड़ेगी। परोक्ष रूप से उनका संदेश था कि कुछ राज्यों को अब धान और गेहूं की बजाय फसल विविधीकरण पर जोर देना चाहिए।