सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- चुनाव हारे को ‘मनोनीत’ कर नहीं दे सकते मंत्री पद

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लोकतंत्र के मंदिर में पिछले दरवाजे से एंट्री पर बहुत महत्वपूर्ण बात कही। उसने कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि अयोग्य घोषित विधायक को विधान परिषद में मनोनीत कर मंत्री नहीं बनाया जा सकता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि अगर विधायक अयोग्य घोषित हुआ है तो वह मंत्री तभी बन सकता है जब फिर से विधानसभा या विधान परिषद का चुनाव जीतकर आए, न कि मनोनीत होकर।

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक विधानसभा से अयोग्य ठहराए गए बीजेपी नेता एएच विश्वनाथ की हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा, “अगर आप एमएलए या एमएलसी के रूप में चुने जाते हैं, तो आप सरकार में मंत्री बन सकते हैं, लेकिन यदि आप मनोनीत हैं, तो आप मंत्री नहीं बन सकते। उच्च न्यायालय का फैसला सही है। हम आपकी विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर रहे हैं।”

उससे पहले, बीजेपी नेता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि यह मुद्दा संविधान के प्रावधानों की कानूनी व्याख्या से संबंधित है जो सदन के सदस्य के अयोग्य होने से संबंधित है। उन्होंने कहा कि उनकी अयोग्यता उसी ऑफिस (विधानसभा) की क्षमता तक सीमित है जहां से उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था। इस पर बेंच ने कहा कि प्रावधान के अनुसार यदि व्यक्ति विधान परिषद के लिए मनोनीत किया जाता है और चुना नहीं जाता है तो अयोग्यता प्रभावी रहेगी। बेंच ने साफ कहा, “अगर आप एमएलए या एमएलसी के रूप में चुने जाते हैं, तो आप सरकार में मंत्री बन सकते हैं, लेकिन यदि आप मनोनीत हैं तो आप मंत्री नहीं बन सकते। उच्च न्यायालय का फैसला सही है। हम आपकी विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर रहे हैं।”

नजीर बनेगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दरअसल, पिछले कुछ दशकों में राजनीति में धनबल और बाहुबल का बोलबाला बढ़ रहा है। जैसे-तैसे पैसा और प्रसिद्धि कमाने वाले लोगों का रुख राजनीति की तरफ होने लगा है। अपराध एवं अन्य गलत धंधों से जुड़े लोग राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त करने के लिए राज्यसभा के रास्ते संसद और विधान परिषद के रास्त विधानमंडल में प्रवेश करने को आमदा होते हैं। अच्छी बात यह है कि कर्नाटक के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य के लिए नजीर बन जाएगा।

फैसले ने खोली लोकतांत्रिक राजनीति में सुधार की राह
शीर्ष अदालत का यह फैसला चुनाव सुधार और देश की लोकतांत्रिक राजनीति को साफ-सुथरा करने के दिशा में एक बड़ा और प्रभावी कदम माना जा सकता है। मंत्री पद या कोई दूसरे लालच में रातोंरात दल बदलने का चलन बढ़ गया है। ऐसे में पीठासीन अधिकारी (विधानसभा अध्यक्ष) और अदालतें संवैधानिक प्रावधानों के तहत दलबदलुओं को अयोग्य तो ठहरा देते हैं, लेकिन उनके लिए विधान परिषद का पिछला दरवाजा खुल जाता है। सत्ताधारी दल उन्हें बहुमत के बल पर चोर दरवाजे से विधानमंडल में लाने की कोशिश करता है।