पेट के कीड़े मारने वाली दवा का कोरोना के इलाज में बिना मंजूरी हो रहा इस्तेमाल

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नई दिल्ली। कोरोना के उपचार में इस्तेमाल हो रही एक दवा ऐवरमैक्टिन के दामों में भारी इजाफा हुआ है। हालांकि, देश में इस दवा को कोरोना के उपचार के लिए अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल हो रहा है। नतीजा यह है कि भारी मांग के चलते इसके दाम आसमान छूने लगे हैं। कई महीनों के बाद राष्ट्रीय औषध मूल्य नियंत्रण प्राधिकरण (एनपीपीए) इस मुद्दे पर सतर्क हुआ है। उसने कंपनियों को दवा की कीमतों में वृद्धि को लेकर नोटिस दिए हैं।

ऐवरमैक्टिन दवा मूलत पेट के कीड़े मारने के काम आती है। कई देशों में कोरोना के उपचार में इसका इस्तेमाल हो रहा है। इस प्रकार की रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं कि इससे मरीजों को फायदा हो रहा है। इसके बाद देश में भी अस्पतालों में इसका इस्तेमाल होने लगा। लेकिन, कोरोना के उपचार के लिए 13 जून को केंद्र सरकार ने जो क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकाल जारी किया है, उसमें इस दवा को शामिल नहीं किया गया है। लेकिन इसका इस्तेमाल खूब हो रहा है।

एक केमिस्ट ने बताया कि लोग बचाव के लिए भी इस दवा को ले रहे हैं। इसलिए बिक्री बढ़ी है और पिछले छह महीनों के दौरान इसकी कीमतों में भारी वृद्धि हुई है। इस दवा की एक गोली की कीमत 20 रुपये से कम होती थी, लेकिन आज वह 35-40 रुपये प्रति गोली बिक रही है। आमतौर पर देश में दवाओं के दाम इस तेजी से नहीं बढ़ते हैं, लेकिन दवा की मांग ज्यादा होने के चलते कंपनियों ने इसके दामों में भारी इजाफा किया है।

सोशल मीडिया में इस दवा का एक फोटो भी वायरल हुआ है, जिसमें दिखाया गया है कि सितंबर में दवा के एक पैक की कीमत 195 रुपये है,जबकि अक्तूबर में सीधे 350 रुपये हो गई है। केमिस्टों का कहना है कि कई छोटी-बड़ी कंपनियां इस दवा को बना रही हैं और करीब-करीब सभी कंपनियों ने इसकी कीमतें बढ़ाई हैं।

कीमत में वृद्धि की वजह बताएं
इस बारे में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन आने वाले एनपीपीए से संपर्क किया गया। एनपीपीए की तरफ से बताया गया है कि दवा की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी पर संज्ञान लिया जा चुका है। यह दवा बनाने वाली कंपनियों से पूछा गया है कि वे कीमतों में बढ़ोतरी की वजह बताएं। उनके उत्तर मिलने के बाद कारण की पड़ताल की जाएगी। यदि बढ़ोतरी तर्कसंगत नहीं होगी तो कार्रवाई की जाएगी। सूत्रों का कहना है कि इसमें मोटे तौर पर यह देखा जाता है कि अनुपात में दवाओं की कीमत बढ़ी है,क्या वास्तव में उसी अनुपात में दवा के साल्ट की कीमत भी बढ़ी है या फिर कंपनियां मौका का फायदा उठाकर सिर्फ मुनाफाखोरी कर रही हैं।