कोटा। दवा कंपनी को बचाने की साजिश के 4 साल पुराने मामले की जांच अब एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी करेगी। कोटा एसीबी चौकी में तत्कालीन ड्रग वेयरहाउस इंचार्ज डॉ. महेंद्र त्रिपाठी, फार्मसिस्ट राकेश मेघवाल, मुकेश मीणा व ड्रग सप्लायर्स के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। डॉ. महेंद्र त्रिपाठी वर्तमान में बूंदी में एडिशनल सीएमएचओ पद पर कार्यरत हैं।
एसीबी के एडिशनल एसपी ठाकुर चंद्रशील ने बताया कि औषधि नियंत्रण संगठन की जांच में दवा अमानक पाई गई थी। इस मामले में भास्कर में खुलासे के बाद मुख्यालय ने प्राथमिक जांच (पीई) दर्ज की थी। पीई में इसको प्रमाणित माना था। इससे राजकोष को काफी नुकसान पहुचा। जनता के स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ किया गया।
इस मामले में घटिया क्वालिटी की दवा को साजिश के तहत बदल दिया गया। मुख्यालय के निर्देश के बाद हिमाचल प्रदेश की दवा सप्लायर्स कम्पनी के साथ ही मेडिकल कॉलेज ड्रग वेयरहाउस के तत्कालीन इंचार्ज डॉ.महेंद्र त्रिपाठी, फार्मसिस्ट राकेश मेघवाल व मुकेश मीणा के मुकदमा दर्ज किया है।
क्या था घोटाले का मामला
मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना (एमएनडीवाई ) के तहत मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में दवा की खरीद हुई थी। इसके तहत 75 एमजी के प्रिगाबालिन कैप्सूल सप्लाई में आए थे। इस दवा का एक सैंपल पूरी तरह सब स्टैंडर्ड निकला। जबकि दूसरा सैंपल 100 फीसदी खरा मिला था। उस समय ड्रग विभाग हैरान था। जब सैंपल एक ही बैच का है और एक ही जगह से लिया गया है तो फिर ऐसा कैसे संभव है?
आरएमएससीएल ने इस कैप्सूल का सैंपल लिया और जांच कराई तो पता चला कि कैप्सूल में प्रिगाबालिन नहीं बल्कि गामापेंटिन हैं। उस समय सप्लायर्स को बचाने के लिए मेडिकल कॉलेज कोटा के ड्रग वेयरहाउस में सप्लाई हुई घटिया दवा को बदल दिया गया था।
प्रिगाबालिनऔर गामापेंटिन दवा की दर में करीब 100 रुपए प्रति स्ट्रिप का फर्क है। प्रिगाबालिन की एक गोली 13 से 14 रुपए की होती है, वहीं गामापेंटिन की एक गोली 3 से 4 रुपए की होती है। दोनों दवाइयां नर्व सिस्टम प्रतिकूल होने पर ही रोगियों को दी जाती है। लेकिन दोनों का काम अलग-अलग होता है। न्यूरो और मनोचिकित्सा के रोगियों की स्थिति के आधार पर संबंधित विभागों के डॉक्टर ही यह तय करते हैं कि कौन सी दवा दी जाए?