भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की शिवराज सिंह चौहान सरकार बरकरार रहेगी। दरअसल, 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है। अब भाजपा के 126 विधायक हो गए हैं जबकि बहुमत के लिए 115 विधायक ही पर्याप्त हैं। प्रदेश की जनता ने कांग्रेस नेता व पूर्व सीएम कमल नाथ तथा दिग्विजय सिंह की जोड़ी को नकार दिया है। ग्वालियर-चंबल अंचल की कुछ सीटों को छोड़कर शेष प्रदेश की सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। अधिक सीटों पर उपचुनाव की वजह से इसे सत्ता का 20-20 मैच भी माना जा रहा था।
गौरतलब है कि सिंधिया के 22 समर्थक विधायकों ने इसी वर्ष मार्च में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर और कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इससे कमल नाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी और उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
नतीजों ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया है। जिन सीटों पर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी, वहां भी उसके प्रत्याशी हार गए। कई कांग्रेस प्रत्याशियों की प्रतिद्वंद्वी से हुई हार का अंतर काफी अधिक रहा। इससे कांग्रेस में संगठन के बिखराव की हकीकत खुलकर सामने आ गई। उल्लेखनीय है कि मंगलवार दोपहर चुनाव नतीजों के रझान में कांग्रेस के पिछड़ने के बाद कमल नाथ भोपाल स्थित पार्टी कार्यालय से घर चले गए थे।
परिणामों व रझानों ने साबित कर दिया कि मध्य प्रदेश में शिवराज की लोकप्रियता सबसे अधिक है। कोरोना काल में मतदान प्रतिशत बढ़ने से लेकर अधिक संख्या में महिलाओं के मतदान करने के पीछे भी उनकी ‘मामा’ की छवि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
सिंधिया का बढ़ेगा कद
ग्वालियर-चंबल अंचल में हमेशा से ही चुनाव परिणाम सिंधिया राजघराने से प्रभावित रहे हैं। यह पहला मौका है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद इस अंचल में भाजपा की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने संभाली थी। विपरीत हालात में भी भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षित तौर पर संतोषजनक रहा। ऐसे में मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने से लेकर बरकरार रखने में सिंधिया का ही योगदान माना जाएगा। भाजपा के बड़े नेताओं का मानना है कि सिंधिया के कितने ही समर्थक जीतें हों, लेकिन उनका कद भाजपा में बढ़ेगा। इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि भाजपा सरकार बहुमत में आई है तो उसका कारण भी सिंधिया ही हैं।