बेंगलुरु। टाटा कंसल्टंसी सर्विसेज, कॉग्निजेंट, इन्फोसिस और विप्रो का देश में 2 अरब डॉलर (करीब 137 अरब रुपये) के पेंडिंग टैक्स को लेकर विवाद चल रहा है। ज्यादातर विवाद एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट्स के लिए इंसेंटिव के कैलकुलेशन और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स को लेकर है। टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो ने सॉफ्टवेयर टेक्नॉलजी पार्क्स ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) और स्पेशल इकनॉमिक जोन (सेज) के तहत जिन इंसेंटिव्स का दावा किया था, वे उसे लेकर ये केस लड़ रही हैं।
कॉग्निजेंट का विवाद इस बात को लेकर है कि वह पैरंट कंपनी को जो मुनाफा देती है, उस पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स का कैलकुलेशन किस तरह से किया जाता है। देश की सबसे बड़ी आईटी सर्विसेज कंपनी टीसीएस का अथॉरिटीज के साथ 5,600 करोड़ रुपये को लेकर टैक्स विवाद चल रहा है जो वित्त वर्ष 2017 के मुकाबले दोगुना है। वित्त वर्ष 2017 में कंपनी का 2,690 करोड़ रुपये को लेकर ऐसा विवाद चला था।
इस बारे में नैस्कॉम की सीनियर वाइस प्रेजिडेंट संगीता गुप्ता ने कहा, ‘कई कर विवाद इसलिए खड़े हुए हैं क्योंकि अलग-अलग इनकम टैक्स अधिकारियों ने नियमों की अलग-अलग व्याख्या की है।’ उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले अक्सर अदालत में पहुंचते हैं और कई साल तक उनकी सुनवाई चलती रहती है।
विप्रो का पहला टैक्स विवाद 30 साल पहले वित्त वर्ष 1985-1986 का है। कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक वह 1,900 करोड़ रुपये के टैक्स विवाद में फंसी है। विप्रो के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत में टैक्स पर मुकदमेबाजी एक लंबी प्रक्रिया है। इंडस्ट्री बरसों से कर विवादों के जल्द निपटारे की मांग करती आ रही है। इकनॉमिक सर्वे 2018 के मुताबिक सरकार और अदालतों को मिलकर बड़ी संख्या में लंबित मामलों के निपटारे का तरीका निकालना चाहिए।’
टीसीएस ने अगले पहली तिमाही के नतीजों के ऐलान से पहले के साइलेंट पीरियड का हवाला देकर अपनी टैक्स देनदारी में आई उछाल के बारे में कॉमेंट करने से इनकार कर दिया। लगभग 3,500 करोड़ रुपये के टैक्स विवादों में फंसा इन्फोसिस ने भी कोई टिप्पणी नहीं की।