नई दिल्ली। एक अदद लड़के की चाहत में देश में 2.1 करोड़ ‘अनचाही’ लड़कियां पैदा हुईं। इकनॉमिक सर्वे 2017-18 में यह बात कही गई है। सर्वे के अनुसार यह अनुमानित आंकड़ा उन लड़कियों का है, जो बेटे की चाह के बावजूद पैदा हुई हैं या जब अभिभावकों ने अपनी इच्छा के अनुसार बेटों की संख्या होने पर बच्चा पैदा नहीं करना चाहा था।
यही नहीं 6.3 करोड़ ‘गायब’ बेटियों का आंकड़ा भी इकॉनमिक सर्वे में दिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि गर्भ में बेटी होने के कारण 6.3 करोड़ भ्रूण हत्या कराए गए। हर साल करीब 20 लाख ऐसी बेटियां गायब हो जाती हैं। इकनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि देश के कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है।
इसमें सुझाव दिया गया है कि देश को लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर कोशिशें करनी चाहिए, जिससे लैंगिक परिणामों के लिहाज से भी भारत की रैंकिंग में सुधार हो सके। सर्वे के मुताबिक, ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनस में रैंकिंग बढ़ाने की कोशिशों की तरह ही लैंगिक स्थिति में सुधार के लिए भी कदम बढ़ाने चाहिए।’
इसमें कहा गया है कि लैंगिक परिणामों के खराब होने के पीछे समाज की सोच, लड़कों को अधिक पसंद करने के कारण ‘गायब’ महिलाओं या ‘अनचाही’ लड़कियां जैसे कारण हैं। भारतीय समाज को इस तरह के चलनों को बदलने का निश्चय करना चाहिए।
रोजगार में घट गई महिलाओं की हिस्सेदारी
देश की वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 2005-06 में 36 पर्सेंट थी, जो 2015-16 में घटकर 24 पर्सेंट रह गई। सर्वे में कहा गया है कि शिक्षा और रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ और सुकन्या समृद्धि जैसी सरकार की प्रमुख योजनाओं के साथ ही सरकारी और निजी क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं को मातृत्व के लिए 26 सप्ताह का अवकाश देना और 50 से अधिक एंप्लॉयीज वाली फर्मों में क्रेच की सुविधा अनिवार्य करना इस दिशा में उठाए गए कदम हैं।
सर्वे में ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बदलाव के लिए महिलाओं की भागीदारी के साथ एक ऐग्रिकल्चरल पॉलिसी लाने का भी सुझाव दिया गया है। इसका मकसद महिला किसानों को कर्ज, टेक्नॉलजी और ट्रेनिंग जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना है।
सर्वे में कहा गया है कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए महिलाओं किसानों को सशक्त बनाना महत्वपूर्ण होगा। इसके साथ ही इसमें बताया गया है कि कृषि क्षेत्र से जुड़े कार्यों में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है।