नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में गिरावट की चिंता को देखते हुए जीएसटी परिषद बिक्री और खरीद के बिलों की मिलान प्रणाली में बदलाव कर सकती है। इसके तहत बैक-एंड को लेनदेन में चूक का पता लगाने और इनपुट टैक्स क्रेडिट के अत्यधिक दावे को नियंत्रित कर राजस्व में चपत पर रोक लगाने में मदद मिल सकती है।
नवंबर में हुई बैठक में परिषद ने करदाताओं पर अनुपालन के बोझ को कम करने को ध्यान में रखते हुए बिलों के मिलान की व्यवस्था को मार्च तक के लिए टाल दिया था। लेकिन कर संग्रह में कमी को देखते हुए इसे दोबारा वापस लाने पर विचार किया जा रहा है।
जीएसटी प्रणाली के तहत जीएसटीआर-1 (बिक्री ) और जीएसटीआर-2 (खरीद) के फॉर्म के साथ दाखिल रिटर्न को जीएसटीआर-3 के साथ मैच होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि करदाता ने सही दावा किया है। सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘बिलों के मिलान की वैकल्पिक व्यवस्था अगले वित्त वर्ष में आ सकती है।
इसमें करदाताओं को खुद मिलान करने के लिए कहने के बजाए, हम अपने स्तर पर इसका मिलान करेंगे। हम जोखिम-आधारित दृष्टिकोण का पालन कर सकते हैं। अगर सकल स्तर पर लेनेदन बेमेल होगा तब हत बिलों का मिलान कर सकते हैं।’ फिलहाल करदाता खुद बिक्री और खरीद के लेनदेन का मिलान करते हैं और चूक होने पर इसकी सूचना देते हैं।
उन्होंने कहा, ‘हम इस व्यवस्था में बदलाव कर सकते हैं और तीन से चार महीने में बैक-एंड के माध्यम से हम बिलों का मिलान करेंगे। इसमें जिन करदाताओं के बिल मैच नहीं करेंगे, उन्हें उसे दुरुस्त करने को कहा जाएगा। हालांकि इस पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।’
जीएसटीएन चेयरमैन अजय भूषण पांडे के नेतृत्व में एक समिति जीएसटीआर-2 और जीएसटीआर-3 की फाइलिंग के मिलान को देख रही है। जुलाई 2017 से मार्च 2018 के लिए जीएसटी-2 और 3 दाखिल करने की अवधि पर भी काम किया जा रहा है।
समिति ने जीएसटीआर 1, 2 और 3 को मिलाने का सुझाव दिया था, ताकि करदाताओं को अलग-अलग फॉर्म न भरना पड़े। अनुमान के मुताबिक जीएसटी संग्रह में करीब 15 से 20 फीसदी की कमी आई है। जीएसटीआर-1 में डीलर द्वारा की गई बिक्री का ब्योरा होता है।
इसे जमा कराने के बाद डीलर द्वारा की गई खरीद का विवरण स्वचालित तरीके से जीएसटीआर-फॉर्म में जेनरेट होता है। इसके बाद डीलर को इन विवरणों की पुष्टि कर फॉर्म को जमा कराना होता है और अंत में जीएसटीआर-3 में करदाता की कर देनदारी तथा उपलब्ध इनपुट टैक्स क्रेडिट दिखाया जाता है।
नवंबर में जीएसटी संग्रह 80,808 करोड़ रुपये रहा। सरकार के आंतरिक अनुमान के मुताबिक अगर यह रुझान जारी रहा तो अप्रत्यक्ष कर संग्रह बजट लक्ष्य से करीब 25,000 से 30,000 करोड़ रुपये कम रह सकता है। सरकार का मानना है कि रिटर्न मिलान, ई-वे बिल और रिवर्स चार्ज व्यवस्था को टाले जाने से राजस्व में कमी आई है।
राजस्व में कमी की वजह से जीएसटी परिषद को 16 दिसंबर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये तत्काल बैठक बुलानी पड़ी और ई-वे बिल को देश भर में समय से पहले लागू करने का निर्णय करना पड़ा।