संसार में न कोई आपका शत्रु है और न कोई आपका मित्र: आदित्य सागर मुनिराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन में कहा कि मनुष्य के अंदर गुण व अवगुण दोनों होते हैं। जब आप गुणों को देखते हैं तो मित्रवत और जब अवगुणों को देखते हो तो शत्रु के समान व्यवहार करते हो।

व्यक्ति को पूर्व जन्मों का कुछ याद नहीं, भविष्य में क्या होगा यह भी पता नहीं, इसलिए वर्तमान में जीवन जीएं और व्यवहार उचित रखें। क्योंकि शत्रु कब मित्र और मित्र कब शत्रु बन जाए यह किसी को नहीं पता है। बबूल के पेड़ में कांटे होते हैं। लोग उससे दूर रहते हैं, परन्तु उसके औषधीय गुण बहुत हैं।

यदि आप किसी के गुणो को नहीं देख पा रहे तो यह आपकी समस्या है। अपने चिंतन की धारा को बढायें और अपना नजरिया बदलेंगे तो आपको गुण दिखेंगे। जब आप अवगुण व कमियां देखने लगते हो तो आप शत्रु मान लेते हो और जब गुण देखते हो तो मित्र मान लेते हो। शत-प्रतिशत गुण किसी में नहीं हैं और यदि है तो वह स्वंय भगवान है।

आदित्य सागर ने कहा कि जब करतूत व कर्म उदय होते हैं तब मित्र व शत्रु बनते हैं। रावण का अंत होना उसकी करतूत थी और विभीषण का राम से मिलकर मित्र बनाना वह उसका कर्मोदय था। उन्होंने कहा कि अपना व्यवहार इतना निर्मल रखो की शत्रु भी मित्र बन जाए। ऐसा व्यवहार न करें जो मित्र भी शत्रु बन जाए। लोग छोटी- 2 बातो पर बैर पाल लेते हैं। व्यक्ति को व्यवहार अच्छा रखना चाहिए पता नहीं कब कौन कहां काम आ जाए। हर बार व्यक्ति की गलती नहीं होती है।

आपका नजरिया भी गलत हो सकता है। इसलिए कभी अपनों पर शक मत करना क्योकि पराये तो अपने है ही नहीं और शक करके आप अपनो को भी पराया बना लेते हो। जब छोटी गलतियां देखते हो तो बातों पर अधिक गोर करते हो या कई बार लोगों की इच्छाएं पूरी नहीं कर पाते हो तो लोग आपके शत्रु बन जाते हैं। इसलिए बातों को ज्यादा गोर नहीं इग्नोर करना चाहिए।

कुछ शत्रु कर्म उदय के वजह से बनते हैं। चाहे रामायण काल हो या महाभारत का युग हो। राम ने जिस सीता के लिए युद्ध किया, उसे ही कर्म उदय की वजह से जंगल छोडना पडा। मां ने अपने पुत्रों को वनवास दिया। भीष्म पिता को अपने पौत्रों और गुरु द्रोण को अपने शिष्यो के खिलाफ हथियार उठाने पड़ गए थे।

गुरुदेव आदित्य सागर ने कहा कि आध्यात्मिक प्रबंधन यह समझाता है कि इस संसार में कोई आपका शत्रु नहीं है और कोई आपका मित्र नहीं है। आप स्वयं के शुत्र व मित्र हैं । आप अच्छा करेंगे तो अच्छा मिलेगा और बुरा करेंगे तो बुरा मिलेगा।