इंद्रियों का संतोष व सांसरिक इच्छाओं की पूर्ति असली सुख नहीं: आदित्य सागर

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से बुधवार को जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में कहा कि मनुष्य सुख, शांति व आनंद के पीछे भागता है। परन्तु जहां असली सुख है, वहां खोज नहीं करता। संसार तो दुखों की खान है। जो संसार से उपर उठने बाद मिलता है। वही असली सुख है।

मनुष्य हीरे व रत्न के लिए आकाश में खोजता है, जबकि वह भूमि के अंदर मिलते हैं। अंदर ज्ञान की लीनता व बाहर मौन का प्रर्दशन ही सुख की ओर ले जाता है। मनुष्य इंद्रियों के संतोष को सुख मान बैठा है। यदि यह वास्तिवक सुख होता तो वह निरंतर होता। एक सीमा के पश्चात इसमें उबनता आ जाती है।

क्योकि यह मात्र भौतिक संतोष है। सुख संसार में नही संसार के पार है। सांसारिक सुख तो लिमिटेड है। वही असली सुख नहीं है। सच्चा सुख तीर्थंकर के पास है, जो अरिहंत के पास है, वही वास्तिवक सुख है। जिस सुख से शांति बढ़े वही असली सुख है। जब सुख व शांति मिले और मन सहज मौन हो जाए वही असली सुख की अनुभूति है।

आदित्य सागर ने कहा कि जो जानता है, सब कुछ बोलता नहीं। उन्होंने कहा कि जहां निराकुलता है वहां सुख है जहां आकुलता है वहां दुख है। जीवन मे आकुलता न करें। धीमा चलें, सफलता मिलेगी। उन्होने कहा कि वास्तविक सम्मान प्राप्त करना है तो मौन रहें। मौन ही सुख का साधन है। सुख व शांति की राह मौन से होकर गुजरती है।

बाहर मौन और अंदर ज्ञान की लीनता हो यही आध्यात्मिक प्रबंधन है। विवादों से बचने की कला भी मौन है। जब अंदर से बोलने की चाह नहीं हो वही असली मौन है। न ज्यादा कहो और न ज्यादा सहो, जिन्होने ज्यादा कहा उन्होंने ही अपना सब कुछ खोया।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, रिद्धि- सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा सहित कई शहरो के श्रावक मौजूद रहे।