कोटा। जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आदित्य सागर मुनिराज ने नीति प्रवचन सुनाते हुए कहा कि मनुष्य को अपनी ऊर्जा का उपयोग संभलकर करना चाहिए। मनुष्य के भीतर अनंत ऊर्जा विद्यमान है। उन्होंने कहा कि प्रयोजन ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग होना चाहिए। आप जैसे अपनी ऊर्जा लगाते हैं वैसे ही आपको परिणाम प्राप्त होते हैं।
यदि गलत कार्यों में ऊर्जा है तो परिणाम भी विपरीत होंगे। सही कार्यों में ऊर्जा लगी है तो आप सफल होंगे। ऊर्जा को संभालने की जरूरत है. क्योंकि ऊर्जा ज्यादा हो जाए तो वह भी हानिकारक बन सकती है। जैसे पद की प्राप्ति आसान होती है, परन्तु पद पर बने रहना मुश्किल होता है।
उर्जा व ज्ञान प्राप्त करना सरल हो सकता है। परन्तु उसका उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है। उन्होने कहा यंत्र, मंत्र, तंत्र या वास्तु सहित कोई भी ज्ञान बुरा नहीं है। परन्तु उसका गलत उपयोग करना बुरा है।
उन्होंने कहा कि इस संसार में काम आने वाली ऊर्जा लौकिक है और आपको मोक्ष की राह पर ले जाने वाली ऊर्जा आध्यात्मिक है। ऊर्जा का सदुपयोग बहुत जरूरी है ऊर्जा अनंत होती है। वह अदृश्य होती है, परन्तु संसार उसी से चल रहा है। उन्होने कहा कि भगवान राम व महावीर ने ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग किया तो वह परम गति को प्राप्त हुए। रावण ने उसका गलत उपयोग किया तो वंश सहित समाप्त हो गया।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पदम बड़ला, प्रेम दुगरिया, राजकुमार सबदारा, ऋषभ गोधा, बसंती लाल पाटनी, धर्म गोधा सहित कई श्रावक उपस्थित रहे।