नई दिल्ली। दुनिया के अनेक हिस्सों में चावल का उत्पादन लगातार गिर रहा है। इस सूची में चीन से लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ तक शमिल हैं। यह वैश्विक चावल बाजार में दो दशकों में सबसे बड़ी कमी है। संकट की वजह चीन में खराब मौसम और रूस-यूक्रेन युद्ध को बताया जा रहा है। इसके चलते दुनियाभर में चावल की कीमतें बढ़ रही हैं।
चावल दुनिया के सबसे अधिक खेती वाले अनाजों में से एक है। फिच सॉल्यूशंस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के सबसे बड़े चावल उत्पादक देश चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ में इस अनाज का उत्पादन तेजी से घटा है। फिच सॉल्यूशंस के कमोडिटी एनालिस्ट चार्ल्स हार्ट के मुताबिक, चावल बाजारों में 1.86 करोड़ टन की कमी हुई है। हार्ट ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर, चावल की कमी का स्पष्ट प्रभाव रहा है, चावल की कीमतें एक दशक के उच्च स्तर पर हैं।’
फिच सॉल्यूशंस कंट्री रिस्क एंड इंडस्ट्री रिसर्च की इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चावल की कीमतें 2024 तक वर्तमान उच्च स्तर के आसपास रहेंगी। रिपोर्ट के अनुसार, चावल की कीमत 2023 से अब तक औसतन 1,421 रुपए प्रति सीडब्ल्यूटी थी, और 2024 में 1,191.59 रुपए प्रति सीडब्ल्यूटी तक कम हो जाएगी। सीडब्ल्यूटी चावल जैसी कुछ वस्तुओं के लिए माप की एक इकाई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2023 के लिए वैश्विक कमी 87 लाख टन होगी। यह 2003-2004 के बाद से वैश्विक चावल की सबसे बड़ी कमी होगी।
चावल संकट की वजह :रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते चावल की आपूर्ति कम हो गई है। इसके अलावा, चीन और पाकिस्तान जैसे चावल उत्पादक देशों में खराब मौसम भी इस संकट के कारक हैं। पिछले साल की दूसरी छमाही में, चीन में कुछ हिस्सों में भारी गर्मी देखी गई तो कई स्थानों में मानसूनी बारिश और बाढ़ से फसल बर्बाद हुई।
कृषि विश्लेषकों के अनुसार, चीन के चावल उत्पादन के प्रमुख केंद्र- गुआंग्शी और ग्वांगडोंग प्रांतों में बीते 20 वर्षों में दूसरी सबसे अधिक वर्षा हुई। इसी तरह, वैश्विक चावल व्यापार के 7.6 फीसदी हिस्सेदार पाकिस्तान में पिछले साल विनाशकारी बाढ़ के कारण वार्षिक उत्पादन में 31 फीसदी की गिरावट देखी गई।
संकट का प्रभाव : वैश्विक खाद्य और कृषि बैंक रैबोबैंक के वरिष्ठ विश्लेषक ऑस्कर जाकरा ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे अन्य देशों में साल-दर-साल कम होते चावल उत्पादन की वजह से संकट हुआ है। वैश्विक चावल उत्पादन में कमी की वजह से इस साल इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया और अफ्रीकी देशों जैसे प्रमुख चावल आयातकों के लिए चावल आयात करने की लागत में बढ़ोतरी होगी।
विश्लेषकों की मानें तो, कई देशों के घरेलू भंडार की भी कमी का सामना करना पड़ेगा। संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित देश वे होंगे जो पहले से ही अत्यधिक घरेलू खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति से त्रस्त हैं जैसे कि पाकिस्तान, तुर्की, सीरिया और कुछ अफ्रीकी देश। फिच सॉल्यूशंस के हार्ट का कहना है कि वैश्विक चावल निर्यात बाजार, भारत के निर्यात प्रतिबंध से भी प्रभावित हुआ है। भारत ने सितंबर में टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
भारत की स्थिति: चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। दुनिया में चावल के शीर्ष निर्यातक भारत ने सितंबर में टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही कुछ अन्य प्रकार के चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगाया गया था। हालांकि, इसके बावजूद भारत का चावल निर्यात पिछले साल रिकॉर्ड 22.26 मिलियन टन तक बढ़ गया। यह आंकड़ा दुनिया के अन्य सबसे बड़े चावल निर्यातक देशों थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका के कुल निर्यात से अधिक है।
वहीं, वर्ष 2022-23 के लिए दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, देश में इस साल चावल का कुल उत्पादन (रिकॉर्ड) 1308.37 लाख टन अनुमानित है। यह पिछले साल की तुलना में 13.65 लाख टन अधिक है। भारत में भी चावल का उत्पादन मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। इस बीच, मौसम विभाग को उम्मीद है कि देश में सामान्य मानसून वर्षा होगी। चावल उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि उन्हें देश में कोई समस्या नहीं दिख रही और लागत नियंत्रण में है।
कब तक सामान्य होगी स्थिति: फिच सॉल्यूशंस का अनुमान है कि वैश्विक चावल बाजार 2023 -24 में लगभग संतुलित स्थिति पर लौट आएगा जिससे कुल उत्पादन में साल दर साल 2.5 फीसदी की वृद्धि होने की उम्मीद है। इसने आगे अनुमान लगाया कि 2024 में चावल की कीमतों में लगभग 10 फीसदी की गिरावट आएगी।