अज्ञानता, अभिमान, अंधकार से सद्मार्ग पर ले जाने वाले ही गुरुः घनश्यामाचार्य

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कोटा। डीडवाना (राजस्थान) स्थित प्राचीन सिद्ध पीठ झालरिया मठ का दिव्य गुरु पूर्णिमा महोत्सव प्रति वर्ष की भाँति इस वर्ष भी जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामीजी घनश्यामाचार्य महाराज के कृपाशीर्वाद से तलवंडी स्थित राधाकृष्ण मन्दिर में बुधवार को धूमधाम से मनाया गया।

कार्यक्रम में सर्वप्रथम सभी भक्तों द्वारा पूर्वाचार्यों एवं गुरु महाराज के चित्र का पूजन किया गया। झालरिया सेवा मण्डल, कोटा एवं राधाकृष्ण मन्दिर समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गूरुपूर्णिमा महोत्सव में भगवान राधाकृष्ण का नयानाभिराम श्रृंगार व मंदिर परिसर को फूलों से सुसज्जित किया गया। इस दौरान एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. गोविन्द माहेश्वरी सहित अन्य झालरिया पीठ के भक्तों ने भजनों के माध्यम से गुरु महिमा का बखान किया।

झालरिया पीठाधिपति घनश्यामाचार्य महाराज ने कोलकाता से फोन के माध्यम से कोटा में भक्तों को आशीवर्चन दिया। उन्होंने कहा कि पहली गुरू मां है। हमारे अंदर शक्ति, सहनशीलता के जो संस्कार हैं, वो सब मां की देन है। आषाढ़ की ही पूर्णिमा को गुरूपूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, क्योंकि यह दिवस वेदव्यास जी का प्राकट्य दिवस है, जो जगतगुरू हैं। दिव्य शक्ति संपन्न गुरू व्यास ने वेदों का पाठ किया, पुराणों को रचा, धर्म का मार्ग बताया।

महाराज ने कहा कि गुरू कौन होता है, ये समझने की जरूरत है। दो अक्षर गु व रू मिलकर गुरू बना। गु का अर्थ है अंधकार और रू से तात्पर्य होता है दूर करने वाला। जो हमारा अंधकार दूर करे। अज्ञानता, अभिमान के अंधकार से हमें उजाले की ओर ले जाए, वही गुरू है। हम मोह में उलझे हैं, माया में बंधे हैं, ऐसे में गुरू ही सद्मार्ग दिखा सकता है।

सब कुछ अनुकूल होने के बाद हमें परमगुरू भगवान को नहीं भूलना चाहिए। क्योंकि यह कृपा भगवान की दी हुई है। प्रवचन सुने और ग्रहण करते हुए सुधार लाना चाहिए। सेवा की ओर बढ़ना चाहिए। अहंकार को छोड़िए, गुरू की शरणागत हो जाइए। जब तक गुरू की सेवा में रहोगे तब तक बढ़ते रहोगे।