मुंबई। फ्रॉड के मामले बढ़ने के बीच आरबीआई ने सभी बैंकों को ऐसे मामलों के बारे में अलर्ट किया है, जिनमें बैंकों में ‘इंटरमीडियरी’ या ट्रांजिटरी अकाउंट्स को बैड लोन छिपाने या मनी लॉन्ड्रिंग पर परदा डालने में इस्तेमाल किया गया। बैंकिंग रेगुलेटर ने सभी बैंकों को ऐसे अनधिकृत लेनदेन की अंतरिम समीक्षा करने और इसका नतीजा अक्टूबर तक बताने का निर्देश दिया है।
बैंकों में खोले गए इंटरमीडियरी या ऑफिस अकाउंट्स में पैसा प्राय: एक या दो दिन पड़ा रहता है और उसके बाद उसे असल बेनेफिशियरी के खाते में क्रेडिट किया जाता है।कोई ब्रांच मैनेजर ऐसे खाते से रकम निकालकर किसी बॉरोअर को अनऑथराइज्ड ओवरड्राफ्ट फसिलिटी दे सकता है ताकि वह तिमाही खत्म होने से पहले या लोन की किस्त चुकाने की तय तारीख से पहले या लोन के नॉन-परफॉर्मिंग असेट घोषित होने से ऐन पहले उसे रेगुलर कर सके और डिफॉल्ट से बच सके।
ओवरड्राफ्ट के रीपेमेंट के लिए बॉरोअर के फंड का इंतजाम करने पर एक-दो दिन में ऐसे ट्रांजैक्शन को रिवर्स कर दिया जाता है। एक सीनियर बैंकर ने कहा, ‘अगर कोई बॉरोअर फंड का इंतजाम नहीं कर पाता तो ब्रांच मैनेजर किसी दूसरे ऑफिस अकाउंट से पहले वाले ओवरड्राफ्ट को बंद करने के लिए नया ओवरड्राफ्ट जारी कर सकता है। ये अनधिकृत ओवरड्राफ्ट होते हैं।
यह सब ब्रांच मैनेजर के साथ बॉरोअर के निजी संबंध पर निर्भर करता है।’ उन्होंने कहा कि अगर बॉरोअर दूसरे ओवरड्राफ्ट पर भी डिफॉल्ट कर जाए तो उसके पास उस अकाउंट के एनपीए घोषित किए जाने से पहले का एक महीना तो होता ही है।
ऐसे टेंपररी ऑफिस अकाउंट्स अनअकाउंटेड कैश जमा कराने में मददगार हो सकते हैं। जमा किए गए कैश को किसी कस्टमर के खाते में सीधे क्रेडिट करने के बजाय वह रकम ब्रांच के इंटरमीडियरी अकाउंट में रखी जाती है। बााद में वह पैसा जब कस्टमर के ऑफिस अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है तो उसे सामान्य बैंकिंग ट्रांजैक्शन के रूप में दिखाया जाता है और पहले वाले चरण पर परदा पड़ा रहता है।
इसके चलते ब्रांच को फाइनैंशल इंटेलिजेंस यूनिट को किसी असामान्य ‘कैश डिपॉजिट’ की जानकारी देने की जरूरत नहीं पड़ती। यह यूनिट सरकार की नोडल एजेंसी है, जो संदिग्ध फाइनैंशल ट्रांजैक्शंस से जुड़ी सूचना की प्रॉसेसिंग करती है।
ऑफिस अकाउंट्स में अस्थायी तौर पर फंड आता है क्योंकि जब क्लियरिंग के लिए चेक आते हैं तो यह रकम कस्टमर के अकाउंट में सीधे क्रेडिट नहीं होती है, बल्कि ऑफिस अकाउंट में रखी जाती है। जब चेक क्लियर होता है तो ऑफिस अकाउंट से पैसा निकलता है और कस्टमर के खाते में क्रेडिट होता है।