शराब बंदी सरकार नहीं, समाज करे- डॉ. साहनी

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कोटा। नशा मुक्ति में उल्लेखनीय सेवाओं के लिए हाल ही में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. आर सी साहनी ने कहा है कि नशा अपराधों की जननी है और कोई अकेली सरकार इसे बंद नहीं कर सकती, समाज को ही आगे आना होगा। समाज ही शराब व अन्य प्रकार का नशा बंद कर सकते है।

गत 30 वर्ष से जन जागृति में लगे डॉ. साहनी ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में कहा कि नशा मुक्ति के लिए किशोर पीढ़ी में भावी बदलाव की पूरी संभावना दिखती है और अब हम सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से शिक्षण संस्थाओं को केंद्रित कर पूरा जीवन इसी मिशन के लिए समर्पित करेंगे।

संवेदना सेवा समिति एवं रिसर्च फाउण्डेशन के माध्यम से समाज में नशे की लत के खिलाफ अलख जगा रहे डॉ. साहनी ने कहा कि 10 साल से कम बच्चे कोरा कागज होते है। उनके किशोर मन पर नशे की बुराईयों का असर ज्यादा होता है। वहीं से जहर समाज में घुलता है।

खेल खेल के माध्यम से हम लोग इस काम को केंद्रित करेंगे। बच्चों की जीने की कला सिखाई जाए तो अच्छे परिणाम सामने आऐंगे। हर शिक्षण संस्था में इसका अलग से प्रशिक्षक होना चाहिए। बच्चों को समझाया जाए कि स्टोप बीफोर स्टार्ट। अधिकांश अपराध की जड़ में नशा महत्वपूर्ण कारण के रूप में सामने आया है।

साहनी ने बताया कि नशा मुक्ति आंदोलन की सफलता में समस्या की जड़ एवं बीज पर ही प्रहार करना पहिले दशक का लक्ष्य रहा है। वंडरगेम के माध्यम से बच्चों को जागृत किया गया। स्काउट के चीफ कमिश्नर के जेसी महान्ति के अनुसार एक लियिन स्काउट गाईड ने नशे के खिलाफ ंसकल्प लिया हैं।

सरकार को नसीहत
राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. साहनी ने कहा कि नशे की बुराईयों से सरकार भी वाकिफ है। सरकार को आय का जरिया शराब के अलावा तलाशना चाहिए। शराब से होने वाली आय के मुकाबले शराब से होने वाले सामाजित पतन ज्यादा दुखदायी है। इसके लिए नए विकल्पों पर विचार होना चाहिए। देश में अनेक विशेषज्ञ हैं जो आय के नए और कारगर विकल्प सुझा सकते है।

साहनी ने सुझाव दिया कि शराब व अन्य नशीले पदार्थों की कीमतें चार से पाचं गुना तक बिना किसी संकोच के बढ़ा दी जाए। इससे निम्न तबका इसकी पहुंच से दूर होगा। अमीर वर्ग में नशा स्टेटस सिंबल है उसे रोकने के लिए अलग से नीति बनानी चाहिए।

देश में सरकार ने कौशल विकास में श्रेष्ठ कार्य किए है। प्रत्येक प्रतिभावान को उसकी योग्यता से काम मिले। समाज में अर्थिक विषमता होने पर,बेरोजगारी तथा कुंठाओं के कारण लोग नशे की ओर अग्रसर होते है। ग्रामीण क्षैत्रों में जैविक खेती को अपना कर रोजगार के नए संसाधन विकसित किए जा सकते है।

नशे की लत ही आत्म हत्याओं और गंभीर अपराधों का कारण भी है। जेल में बंद 55 से 60 प्रतिशत अपराधी नशे के कारण होने वाले अपराध की वजह से जेल में है। अस्पतालों में 36 प्रतिशत रोगी नशा जनित बीमारियों के कारण लोग पहुंचते है।

उन्होंने कहा कि शराब व कोकीन, अफीम ,चरस तथा स्मैक आदि के सेवन से शरीर का लीवर खराब होता है और मस्तिष्क भी शून्य हो जाता है ,उसके बाद वह पशु की तरह का व्यवहार करने लगता है।