नेटबंदी: पेपर लीक रोकने का क्या यही है सही तरीका!

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड की ओर से आयोजित प्राथमिक (प्रथम लेवल), उच्च प्राथमिक ( द्वितीय लेवल) की 48 हजार पदों की सीधी अध्यापक भर्ती परीक्षा (रीट) का रविवार को दूसरा दिन है और नेटबंदी का भी, जिसे राज्य के शहरी आबादी क्षेत्र के बड़े हिस्से में लागू किया गया है क्योंकि यह परीक्षा सात संभागीय मुख्यालयों कोटा,अजमेर, भरतपुर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर और जयपुर सहित चार जिला मुख्यालयों अलवर, भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर और टोंक में आयोजित की गई।

प्रशासन ने परीक्षा की अवधि के दौरान इन सभी जगहों पर नेटबंदी की हुई है लेकिन क्या नेटबंदी के जरिए ही पेपर लीक जैसे संगीन अपराध की घटनाओं को रोक पाना संभव है और यदि संभव है तो फिर बीते दो सालों में जबसे नेटबंदी का चलन बढ़ा है तो राजस्थान में नेटबंदी के बावजूद विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर लीक हुए।

राजस्थान में नेटबंदी के बावजूद विभिन्न प्रतियोगिताएं प्रतियोगिता भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है और यह सीधे-सीधे राज्य सरकार की प्रशासनिक विफलता का नतीजा है क्योंकि नेट की वजह से प्रतियोगिता परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं,ऐसा संभव नहीं है बल्कि यह परीक्षा संचालित करने वाली एजेंसियों के कुछ कर्ताधर्ताओ की ऐसी वारदातों को अंजाम देने में लिप्त संगठित गिरोह से सांठगांठ की वजह से ही संभव हो पाया है।

यह पिछले सालों में यह काला धंधा कितना अधिक लाभ का सौदा बन गया है कि इसका अनुमान इससे ही लगाया जा सकता है कि दो दिन से आयोजित हो रही अध्यापक भर्ती परीक्षा (रीट) का वास्तविक पेपर लीक नही होने के बावजूद ऐसी वारदातों को अंजाम देने वाले गिरोहों ने अपने आर्थिक लाभ के लिए नकली पर्चा तैयार कर न केवल उसे लाखों रुपए में बेचा बल्कि जाली पेपर को अभ्यार्थियों से सॉल्व करवा कर परीक्षा पूरी की प्रैक्टिस तक करवा ड़ाली।

केंद्र सरकार के नेटबंदी के फैसले और उसके बाद उससे हुई दिक्कतों को कम करने की दृष्टि से अपनाई गई डिजिटल बैंकिंग सेवा को लगातार बढ़ावा दिए जाने के कारण नेट की व्यवस्था का आज आम जनजीवन पर गहरा असर है और जरूरत बन गया है क्योंकि अब आवश्यक जरूरतों को पूरा करने में भुगतान की पद्धति के लिए डिजिटल बैंकिंग का उपयोग सामान्य सा हो गया है जिनमें

सब्जी, दूध,किराने के सामान जैसी खाद्य वस्तुओं की खरीदारी से लेकर परिवहन के रूप में इस्तेमाल की जा रही सर्विस उबर ओला आदि के ऑनलाइन डिजिटल पेमेंट शामिल है इसीलिए नेटबंदी के ऐसे मौकों पर बड़ी तादात में आम आदमी भी बुरी तरह प्रभावित होता है।

कई बार तो भर्ती परीक्षा के वह अभ्यर्थी ही सबसे अधिक इस नेटबंदी से प्रभावित हो जाते हैं जो एक शहर से दूसरे शहर में परीक्षा देने के लिए आते हैं और अपना परीक्षा केंद्र का नियत सही स्थान तलाश करने के लिए उन्हें मोबाइल पर नेट के जरिए गूगल मैप को तलाशना होता है लेकिन नेट बंद के कारण वे ऐसा नहीं कर पाते।

प्रदेश में करीब 7.82 करोड़ की आबादी में से करीब 6.28 करोड़ लोग मोबाइल यूजर्स है और इनमें भी लाखों की तादात में ऐसे लोग हैं जो नेट के जरिए डिजिटल बैंकिंग व्यवस्था से जुड़े हुए हैं और जब भी प्रदेश में किन्ही कारणों से नेट बंद की जाती है तो इन लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

यह स्थिति तब है जब सर्वोच्च न्यायालय तक ने अपने एक फैसले में अपनी एक व्यवस्था में नेटबंदी को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत उल्लंघन माना है क्योंकि इंटरनेट मौलिक अधिकार होने के कारण नेटबंदी से व्यक्ति के इस अधिकार का हनन होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी,2020 में यह व्यवस्था दे चुका है।

असल में हो यह रहा है कि राजस्थान में नेटबंदी के बावजूद पेपर लीक की घटनाएं होती रहती है और राज्य सरकार और उसका प्रशासन अपनी नाकामियों को छुपाने-पर्दादारी के लिए आम आदमी पर जबरिया ‘डिजिटल आपातकाल’ थोप रहे हैं जबकि सरकार और प्रशासन को नेटबंदी के बजाये पेपर लीक रोकने के लिए हर संभव सख्त कदम उठाने चाहिए लेकिन उसकी जगह वह नेटबंदी करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते है।

स्थिति यह है कि अशांत राज्य माने जाने वाले जम्मू एंव कश्मीर के बाद राजस्थान देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां विभिन्न अवसरों पर नेटबंदी की गई है। जम्मू कश्मीर में जहां 418 बार नेटबंदी की गई तो राजस्थान में 93 बार नेटबंदी की गई और उत्तर प्रदेश में नेटबंदी की संख्या 30 है। इसके विपरीत कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां अभी तक केवल एक-एक बार ही नेटबंदी की गई है।

इस आर्टिकल को Lenden News की टीम ने एडिट नहीं किया है। लेखक ने जैसा भेजा है वैसा ही प्रकाशित किया गया है।