माताएं अपने बेटों को चरित्रवान बनाएं

757

कोटा। आर्य समाज कोटा की ओर से तीन दिवसीय व्यक्तित्व विकास एवं वैदिक संस्कार शिविर शुक्रवार को रावतभाटा रोड स्थित एक स्कूल में प्रारंभ हुआ। पूर्व महापौर सुमन श्रृंगी ने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने महिलाओं को समान भागीदारी देने की पैरोकारी की थी। उस समय में भी उन्होंने महिला शिक्षा के बारे में महत्वपूर्ण विचार देश के सामने रखे थे।

आर्य समाज देश और समाज को राह दिखाने वाला पंथ है। युवाओं में चरित्र और संस्कारों की कमी के कारण से दुष्कर्म की घटनाएं बढ रही हैं। युवा संस्कारहीन और आचरणहीन होकर गलत राह पर चल पड़ते हैं। आज समय की जरूरत है कि माताएं अपने बेटों को चरित्रवान बनाएं।

सरिता रंजन गौतम ने कहा कि आर्य समाज के शिविर व्यक्तित्व विकास के साथ ही आत्मबल को बढाने वाले होते हैं। शिविरों में परस्पर विचारों का आदान प्रदान होता है, जिससे सभी लाभान्वित हो सकते हैं। शिविर संयोजक आर्य समाज कुन्हाड़ी के प्रधान पीसी मित्तल ने बताया कि शिविर में चरित्र निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है। टीवी और मोबाइल के कारण से समाज में व्याधियां उत्पन्न हो रही हैं। इस शिविर में बिना टीवी और मोबाइल के संस्कारों के निर्माण पर ध्यान दिया जा रहा है।

प्रचार प्रभारी अर्जुनदेव चड्ढा तथा शिविर पूर्णतः आवासीय है। इसमें मनुष्य के चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक विकास, सम्पूर्ण शारीरिक उन्नति समेत विभिन्न विषयों के बारे में जानकारी दी जा रही है। वेदों में कहा गया है, ‘मनुर्भवः’, इसी भावना को साथ लेकर चरित्र निर्माण और संस्कार देने का कार्य किया जा रहा है। इस दौरान ‘ऊॅं विश्वानिदेव सवितर दुरितानी परासुवः….. ऊॅं सहनाववतु सहनौ भुनक्तु…’’ वेदमंत्रों का गायन भी किया गया।

आचार्य चन्द्रेश ने ज्ञान और उपासना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संकल्प शक्ति के द्वारा व्यक्तित्व विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। वेदों में मनुष्य को मुक्ति तक पहुंचने के लिए ज्ञान, कर्म तथा उपासना के साधन बताए गए हैं।

तनाव व संघर्ष के समय भागना नहीं चाहिए, बल्कि इन परिस्थितियों का मुकाबला करना चाहिए। व्यक्ति को ज्ञानपूर्वक, न्याय पूर्वक तथा त्याग पूर्वक संसार का भोग करना चाहिए। मनुष्य जिस भी स्थिति में रहे, ज्ञान, कर्म व उपासना के साथ रहे तो निश्चित ही जीवन की नौका पार हो जाएगी।

आचार्य संदीप ने कहा कि जब मनुष्य के हृदय में ज्ञान की अग्नि प्रज्ज्वलित होगी, तो सब बुरे भाव, भावना, कर्म ज्ञान की अग्नि में भस्म हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में मानव हृदय में देवत्व जागृत हो जाता है तथा दैवीय भाव आते हैं। मनुष्यता प्रकट होती है तथा राक्षसी विचार दब जाते हैं। जीवन की दशा बदल जाती है। अगर जीवन तथा जगत में सफलता प्राप्त करना चाहते हो तो ज्ञान पूर्वक जागो, उठो और ज्ञान के द्वारा अपने आप को पहचानों।