रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर गीतांजलि विमर्श कार्यक्रम का आयोजन

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कोटा। रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा मे पाठक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उदघाटन सत्र मे डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालयध्यक्ष ने बताया कि रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले नॉन-यूरोपियन और पहले भारतीय थे। टैगोर को नोबेल पुरस्कार उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह गीतांजलि के लिए दिया गया था। वह एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक समाज सुधारक थे।

अध्यक्षता कर रहे राजू गुप्ता ने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर को 1915 में नाइट हुड की उपाधि से सम्मानित किया गया था, लेकिन उन्होंने वर्ष 1919 में अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार के विरोध में ये सम्मान अंग्रेजों को वापस लौटा दिया था।

मुख्य अतिथि तापीय परियोजना के उप मुख्य अभियंता बिगुल जैन ने कहा कि गुरुदेव का मानना था कि अध्ययन के लिए प्रकृति का सानिध्य ही सबसे बेहतर है। उनकी यही सोच 1901 में उन्हें शांति निकेतन ले आई। उन्होंने खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता ने 1863 में एक आश्रम की स्थापना की थी, जिसे बाद रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में बदला।

मुख्य वक्ता चन्द्रशेखर सिंह ने कहा कि जो यह जानते हुए भी वृक्ष लगाता है कि वह उनकी छाया में कभी नहीं बैठ पाएगा, उसने जीवन का अर्थ समझना शुरू कर दिया है। इसका अर्थ यह है कि हमें दरिद्र नारायण (मानव समाज) की सेवा करनी चाहिए।

विशिष्ट अतिथि डॉ. शशि जैन ने कहा कि सफलता का अर्थ है आत्म-समर्पण, जो हमें अपने काम में पूरी तरह से लगे रहने की क्षमता देता है। इस अवसर पर युवाओ ने टैगोर के साहित्य की प्रदर्शनी भी लगाई |