जिनके लिए हमेशा याद किए जाएंगे अरुण जेटली

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नई दिल्ली। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अरुण जेटली की पहचान एक विद्वान, वाकपटु और आर्थिक, कानूनी व राजनीतिक मुद्दों की गहराई तक समझ रखने वाले नेता की रही। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले जेटली ने अडिशनल सॉलिसिटर जनरल से लेकर देश के वित्त मंत्री तक की जिम्मेदारी संभाली।

यूपीए शासन के दौरान बतौर नेता प्रतिपक्ष उन्होंने राज्यसभा में सत्ता पक्ष को अपने दमदार और तर्कपूर्ण भाषणों से अक्सर बैकफुट पर जाने को मजबूर किया। आर्थिक क्षेत्र में भी उन्होंने जीएसटी और दिवालिया कानून जैसे अहम मसलों को मजबूती से आगे बढ़ाया। आइए जानते हैं, आर्थिक क्षेत्र में उनकी ओर से लिए गए महत्वपूर्ण फैसले…

  1. गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स : GST यानी गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स को अबतक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म माना जा सकता है। इसे लागू कराने के शिल्पकार अरुण जेटली ही रहे। राज्यों को इसके लिए मनाना निश्चित तौर पर टेढ़ी खीर थी। उन्हें मनाने का श्रेय जेटली को ही जाता है। जुलाई 2017 में जब GST लागू हुई तो शुरुआत में तमाम समस्याएं आईं और व्यापारियों ने इस कदम का स्वागत नहीं किया। लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री जेटली ने धैर्य के साथ काम लिया और जीएसटी फाइलिंग प्रक्रिया को आसान और बिजनस फ्रेंडली बनाने के साथ-साथ टैक्स दरों को संशोधित कर आम उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाने वाला बनाया।
  2. इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड: जीएसटी के अलावा इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की भी गिनती बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में होती है। इसका श्रेय भी जेटली को जाता है। बैंकिंग व्यवस्था में ढांचागत सुधार के तहत यह कानून बनाया गया। बैंक से बड़े-बड़े कर्ज लेकर उन्हें गटक जाने वाली कंपनियों और पूंजीपतियों में खौफ के लिए इस तरह के कानून की शिद्दत से जरूरत थी। इस कानून का सकारात्मक असर भी दिख रहा है। बीते 2 सालों में इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक कीमत की फंसी हुई संपत्तियों का निस्तारण किया गया है।
  3. मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी का गठन: मौद्रिक नीति बनाने में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के उद्देश्य से 2016 में मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) का गठन भी जेटली के महत्वपूर्ण आर्थिक फैसलों में शामिल है। आरबीआई गवर्नर की अगुआई वाली यह कमिटी ही अब ब्याज दरों को तय करती है। कमिटी में 6 सदस्य होते हैं जिनमें RBI से 3 और इतने ही सरकार की तरफ से नामित सदस्य होते हैं। साल में MPC की कम से कम 4 बैठकें जरूरी हैं।
  4. NPA की सफाई: मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बतौर वित्त मंत्री जेटली ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) की बढ़ती समस्या से निपटने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की। उन्हीं की देखरेख में बैंकिंग सेक्टर में NPA की सफाई शुरू हुई। इसका फायदा यह हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र के वे बैंक जो घाटे में चल रहे थे, वे भी धीरे-धीरे प्रॉफिट में आने लगे।
  5. बैंकों का एकीकरण: वैसे तो तमाम सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत बनाने की जरूरत बताई लेकिन यह काम जेटली के नेतृत्व में ही शुरू हुआ। बैंकों का एकीकरण बेशक जेटली के महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल है। स्टेट बैंक में उसके 5 असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय हो चाहे देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय, इन फैसलों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत में सुधार हुआ।
  6. राजकोषीय घाटे और महंगाई पर नियंत्रण: मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बतौर वित्त मंत्री जेटली के नाम यह भी एक बड़ी उपलब्धि है। 2014 में भारत का राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत था, जो अप्रैल 2019 में घटकर 3.4 प्रतिशत पर आ गया। इसी तरह 2014 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 9.5 था जो अप्रैल 2019 में 2.92 दर्ज किया गया। यह एक शानदार कामयाबी है।
  7. एफडीआई का उदारीकरण: FDI नियमों में ढील के पक्षधर जेटली के प्रयासों से डिफेंस, इंश्योरेंस और एविएशन जैसे सेक्टर भी FDI के लिए खोले गए। FIPB (फॉरन इन्वेंस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) को भंग किया गया। इन कदमों से FDI में उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला। 2014 में जहां भारत में 24.3 अरब डॉलर की FDI आई थी वहीं आने वाले वर्षों में यह लगातार बढ़ते हुए 2019 में 44.4 अरब डॉलर तक पहुंच गई। इसका श्रेय बहुत हद तक जेटली को जाता है।
  8. बजट सुधार: अरुण जेटली के ही नेतृत्व में अहम बजट सुधार हुए। आम बजट में ही रेल बजट के मिलाने, बजट पेश करने की टाइमिंग में बदलाव करते हुए उसे पहले पेश करने (1 फरवरी) जैसे कदम बजट सुधार के लिहाज से काफी अहम हैं।
  9. विनिवेश पर फैसला: आर्थिक मसलों पर उनकी गहरी समझ को देखते हुए ही 1999 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विनिवेश विभाग का गठन किया तो इसकी जिम्मेदारी जेटली को दी। जेटली के कामों का ही नतीजा था कि वाजपेयी ने 2001 में अलग से विनिवेश मंत्रालय का गठन किया। तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के नेतृत्व में सरकार ने घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम की। विनिवेश मंत्री के तौर पर शौरी अगर कामयाब हुए तो उसके पीछे जेटली द्वारा खड़ी की गई बुनियाद थी।
  10. जनधन योजना:वित्तीय समावेशन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी जनधन योजना की कामयाबी का श्रेय अरुण जेटली को ही जाता है। बतौर वित्त मंत्री जेटली ने यह सुनिश्चित करने में सफलता पाई कि बैंक आम लोगों के लिए अपने दरवाजे न बंद करें। वित्त मंत्रालय के ताजा आंकड़े के मुताबिक 3 जुलाई 2019 तक कुल 36.06 करोड़ जनधन खाते खुल चुके थे। न्यूनतम राशि रखने की बाध्यता नहीं होने के बावजूद इन खातों के जरिए बैंकों के पास 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा है। योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने 28 अगस्त 2018 के बाद खोले गए खातों के लिए दुर्घटना बीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दिया है। इसके साथ ओवरड्राफ्ट की सीमा भी दोगुनी कर 10,000 रुपये कर दी गई है।