अब निगाहें भाजपा की चुनाव संचालन समिति की कमान पर

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष की नियुक्ति, गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाए जाने व दो महत्वपूर्ण पदों राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं उप नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारियां सौंपी जाने के बाद अब मुख्य दौड़ अगले विधानसभा चुनाव में चुनाव संचालन समिति (स्टियरिंग कमेटी) की कमान संभालने को लेकर रह गई है। किसी भी राज्य में जिसमें विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां की चुनाव संचालन समिति के प्रभारी या अध्यक्ष की जिम्मेदारी को सबसे अधिक अहम माना जाता है।

आमतौर पर यह भी माना जाता है कि इस राज्य का विधानसभा चुनाव जिस संचालन समिति के प्रभार में लड़ा जा रहा है और ऐसी स्थिति में यदि पार्टी विधानसभा चुनाव के बाद बहुमत लायक विधायक जुटाने की स्थिति में होती है तो संचालन समिति का संयोजक ही इन हालातों में विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक दावेदार होता है।

ऎसा आमतौर पर तब भी होता है जब पार्टी वहां पहले से ही घोषणा कर चुकी है कि वह बिना किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किए विधानसभा का चुनाव लड़ेगी, जैसा की हालत वर्तमान में राजस्थान में हैं।

जहां भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व सहित राज्य के कई वरिष्ठ नेता तक पिछले एक साल से लगातार यह घोषणा करते आ रहे हैं कि पार्टी किसी को मुख्यमंत्री के चेहरा के रूप में पेश किए बिना विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। यह दीगर बात है कि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी में सत्ता संघर्ष और नेतृत्व हथियाने की लड़ाई बीते दो-तीन सालों में इस हद तक के चरम पर पहुंच गई है कि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चाह कर भी किसी को ‘सीएम फ़ेस’ घोषित करने में भी अपने आप को असहाय महसूस कर रहा है।

ऐसे में मौजूदा हालात में राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रही और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे अगले विधानसभा चुनाव में चुनाव संचालन समिति की जिम्मेदारी संभालने की नैसर्गिक दावेदार है और वैसे भी वर्तमान के प्रदेश भाजपा नेताओं में वे पार्टी कार्यकर्ताओं में सबसे अधिक जन स्वीकार्य और आमजन में सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेता है।

साथ ही यह भी उम्मीद लगाई जा रही है कि चूंकि अभी तक श्रीमती राजे को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी है, इसलिए बहुत संभव है कि उन्हें चुनाव संचालन समिति का उत्तर दायित्व सौंपा जा सकता है। अब मूल बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी में आज की स्थिति यह है कि किसी जमाने में प्रभावी रहा नागपुर का राष्ट्रीय स्वयंसेवक का मुख्यालय भी ऐसा उत्तरदायित्व किसे सौंपे।

यह फ़ैसला करने के मामले में प्रभावी नहीं रह गया है। ऐसे में राजस्थान में चुनाव संचालन समिति का प्रभारी कौन होगा? यह नाम तय करना अब केवल और केवल भारतीय जनता पार्टी के इकलौते आलाकमान नरेंद्र मोदी के हाथ में ही रह गई है। यह जगजाहिर है कि श्रीमती राजे नरेंद्र मोदी और उनके वरदहस्त हासिल अमित शाह को कितनी नागवार है।

ऐसे में पिछले दरवाजे खुले हुए हैं, जहां से एक बार प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रह जाने के बावजूद आज भी प्रदेश के मतदाताओं के बीच नामालूम सा चेहरा ओम प्रकाश माथुर भी प्रवेश पा सकते हैं। जिनकी इकलौती मगर सबसे बड़ी काबिलियत यही है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी हैं।

क्योंकि पार्टी ने उन्हें उस समय गुजरात का प्रभार सौंपा था, जब भारतीय जनता पार्टी वहां सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही थी। संयोग से यह मुराद पूरी हुई भी। पहली बार नरेंद्र दामोदरदास मोदी वहां के मुख्यमंत्री बने और बाद में ओम प्रकाश माथुर के प्रभारी काल में वे तीन बार इस पद पर रहते हुए बाद में अपने उद्योगपति मित्रों की मदद से लालकृष्ण आडवाणी को सत्ता संघर्ष में पछाड़कर सीधे प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे।

दूसरे बड़े दावेदार के रूप में गजेंद्र सिंह शेखावत मौजूद है, जो वर्तमान में केंद्र में जल संसाधन मंत्री हैं और प्रधानमंत्री के प्रति वफादार हैं। अब करोड़ों रुपए का संजीवनी घोटाला उनके लिए सबसे बड़ी फ़ांस साबित हो सकता है।

क्योंकि इस घोटाले में वे अकेले ही नहीं बल्कि उनका पूरा कुनबा ही फंसा हुआ है। अब तो गुजरात के सूरत की एक अदालत के कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाए जाने और उसके बाद आनन-फ़ानन में लोकसभा सचिवालय के उनकी लोकसभा की सदस्यता को रद्द करने के फैसले के उपरांत तो स्वाभाविक रूप से गजेंद्र सिंह शेखावत पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है।

खुद शेखावत भी इसको लेकर पूरी तरह से आशंकित हैं। इसीलिए गिरफ्तारी से बचने के लिए व पहले ही न्यायालय की शरण में पहुंच चुके हैं। क्योंकि केवल एक बार की गिरफ्तारी उनके जीवन भर के अरमानों पर पानी फेर सकती है।

फ़िर माहौल इतना तनावपूर्ण बन गया है कि गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी गहलोत-पायलट के रिश्तों में खटास, एनआरसीपी सहित अन्य कई मसलों पर गजेंद्र सिंह शेखावत की बयानबादी के रुप में रोज-रोज की ‘किटकिट’ से अजीज अशोक गहलोत भी उनके खिलाफ कोई भी कार्यवाही करने की कुछ अवसरों पर स्पष्ट चेतावनी दे चुके हैं।