राजस्थान में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों ने सरकार की चिंता बढ़ाई

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जयपुर। राजस्थान में ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। जयपुर, अजमेर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर समेत कई जिलों में इसके करीब 400 मामले हैं। अकेले जयपुर के एसएमएस हाॅस्पिटल में 45 से अधिक मरीज भर्ती हैं। अस्पताल में 33 बेड का वार्ड फुल होने के बाद अलग से नया वार्ड बनाया गया है।

वजह- प्रदेश में ब्लैक फंगस नोटिफाइड डिजीज घोषित नहीं है। इसलिए सरकार के पास इसके आंकड़े नहीं हैं। इसलिए राज्य सरकार को हरियाणा की तर्ज पर इसे नोटिफाइड डिजीज घोषित करना चाहिए। ब्लैक फंगस नोटिफाइड डिजीज घोषित हुई तो सरकारी व निजी अस्पतालों को मरीजों और मौत की रिपोर्ट देना जरूरी होता है।

विभाग के पास मरीज का हर डेटा होता है। हेल्थ सेक्रेटरी सिद्धार्थ महाजन के अनुसार, मलेरिया-डेंगू की तरह इसे भी नोटिफाइड डिजीज घोषित करने पर विचार चल रहा है।

क्यों होता है ब्लैक फंगस
यह फंगस संक्रमण मस्तिष्क, फेफड़े और ‘साइनस’ को प्रभावित करता है। मधुमेह के रोगियों एवं कमजोर प्रतिरक्षा वाले व्यक्तियों के लिए जानलेवा हो सकता है। इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के नाक-कान-गला (ईएनटी) रोग चिकित्सक डॉ. सुरेश सिंह नरूका ने कहा कि मधुमेह, वृक्क रोग, यकृत रोग, वृद्धावस्था आदि से कम प्रतिरक्षा वाले लोगों में म्यूकोरमाइकोसिस अधिक देखने को मिलता है।

उन्होंने कहा कि यदि ऐसे रोगियों को स्टेरॉयड दिया जाता है तो उनकी प्रतिरक्षा और घट जाती है। फंगस को पनपने का मौका मिल जाता है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महज एक फीसदी संक्रमितों की जान लेता है, जबकि ब्लैक फंगस से मृत्युदर 75 फीसदी है।उन्होंने कहा कि म्यूरकोरमाइकोसिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के भी गंभीर दुष्प्रभाव हैं और इनकी वजह से किडनी से जुड़ी समस्याएं, स्नायुतंत्र से जुड़े रोग और ह्रदयाघात हो सकता है।